Book Title: Munisuvrat Kavya
Author(s): Arhaddas, Bhujbal Shastri, Harnath Dvivedi
Publisher: Jain Siddhant Bhavan Aara

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Page 2
________________ भूमिका “कान् पृच्छामः सुराः स्वर्गे निवसामो वयं भुवि । किम्बा काव्यरसः इजादुः किम्ना स्वादीयमी सुभा" ॥ संसारसुमनोद्यान का काव्य ही फलकण्ठ अथवा कल्प-लतिका है। सदाव. सम्पन्न सहृदय-गणों की मनस्तुष्टि अथवा अभीष्ट प्राप्तिका एक-मात्र साधन काव्य ही है। काव्य-कानन के प्रकाम पर्याटक तथा कषिता-कामिनी के कटाक्ष-कोर के लक्ष्य-भूत कविकण्ठीरव विझवृन्द ने काव्य का हृदय से आदर किया है। मेरी तो यही धारणा है कि इस पञ्चम काल में दार्शनिक तथा धर्मशास्त्रीय गूढ़ रहस्यों के उपदेश तथा माता की विरलता का विचार कर ही “थाच्छलेन बालानां नीतिस्तदिह कश्यते" के अनुसार आचाव्यों तथा कवि-कुंजरोंने शब्दार्थालङ्कार से समलकृत, प्रलाद माधुर्यादि गुणों से समु:शासित, लाटी अथ च माधुरी आदि काव्योचित बीतियों से विजड़ित और वसन्ततिलकादि वृक्षों से सम्बलित काव्यों के द्वारा कथा-कथानक रूप में दर्शन तथा धर्म के मार्मिक सिद्धान्तों को दरसा कर सर्व साधारण शिक्षितों को लोकोत्तर लाभ पहुंचाया है। कौन ऐसे सहृदय-समुदाय हैं जो विमावानुभावादिकों से अभिष्पञ्जित, बीर वैराग्यादि रसों से समुच्छलित तथा ध्वनिव्यङ्गयाओं से मुखरित काव्यकल्लोलिनी में गोता लगाना अपना परम पुण्योदय नहीं समझते हैं, अतः साहित्य-सदन का साहवय स्वामी अथवा झाना घी का दुर्वागत केशरी यदि काव्य को माना जाय तो मैं समझता है कि, यह अनुचित नहीं होगा। प्रस्तुत पुस्तक भी काव्य ही है। इसका नाम "मुनिसुवत काप" अपर नाम "काध्य रक्ष" है। यह उत्तर पुराण के आधार पर रवित हुआ है। इसमें दस सगे हैं। जन्म. कल्याणकसे मोक्ष-कल्याणक तक की जोधन-घटना श्रीमुनिसुवत देव की बड़ी रोचकता तथा प्राञ्जल पद्धति से वर्णित है। आपके पिता का नाम राजा सुमित्र तथा माता का महिषी पद्मावती था। आपकी राजधानी राजगृह में थी। राजगृह जैनियों का कैसा प्रसिद्ध तथा पवित्रतम तीर्थ-स्थान है यह यहां बताने की ज़रूरत नहीं हैं। वहाँ की शान्तिशीलता, पवित्रता तथा प्राकृतिक दर्शनीयता यह बात जतलाये देती है कि यहां जैन-राम

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