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मृत्यु समय, पहले और पश्चात्...
मृत्यु समय, पहले और पश्चात्...
डाँटेगा, 'ऐसा करना चाहिए न ! ऐसी बेवकूफी की बात करते हो?' यानी सारा दिन लोग डाँटते ही रहते हैं ! इसलिए ये लोग तो उलटे चढ़ बैठते हैं, आपकी सरलता का लाभ उठाते हैं। इसलिए मैं आपको समझाता हूँ कि लोग जब दूसरे दिन पूछने आएँ तो आपको क्या कहना चाहिए कि भाई, चाचा को ज़रा बुख़ार आया और टप्प हो गए, और कुछ हुआ नहीं था।' सामनेवाला पूछे उतना ही जवाब। हमें समझ लेना चाहिए कि विस्तार से कहने जाएंगे तो झंझट होगी। उसके बजाय तो. रात को बुख़ार आया और सुबह टप्प हो गए, कहें तो फिर कोई झंझट ही नहीं न!
स्वजन की अंतिम समय में देखभाल प्रश्नकर्ता : किसी स्वजन का अंतकाल नज़दीक आया हो तो उसके प्रति आस-पास के सगे-संबंधियों का बरताव कैसा होना चाहिए?
दादाश्री : जिनका अंतकाल नज़दीक आया हो, उन्हें तो बहुत अच्छी तरह सँभालना चाहिए। उनका हर एक शब्द सँभालना चाहिए। उसे नाराज़ नहीं करना चाहिए। सभी को उन्हें खुश रखना चाहिए और वे उलटा बोलें तब भी आपको स्वीकार करना चाहिए कि 'आपका सही हैं!' वे कहेंगे, 'दूध लाओ' तब तुरन्त दूध लाकर दे दें। तब वे कहें 'यह तो पानीवाला है, दूसरा ला दो!' तब तुरन्त दूसरा दूध गरम करके ले आएँ। फिर कहें कि 'यह शुद्ध-अच्छा है।' परन्तु उन्हें अनुकूल रहे ऐसा करना चाहिए, ऐसा सब बोलना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् उसमें खरे-खोटे का झंझट नहीं करना है?
दादाश्री : यह खरा-खोटा तो इस दुनिया में होता ही नहीं है। उन्हें पसंद आया कि बस, उसके अनुसार सब करते रहें। उन्हें अनुकूल रहे उस प्रकार से बरताव करें। वो छोटे बच्चे के साथ हम किस प्रकार का बरताव करते हैं? बच्चा काँच का गिलास फोड़ डाले तो हम उसे
डाँटते हैं? दो साल का बच्चा हो, उसे कुछ कहते हैं कि क्यों फोड़ डाला या ऐसा-वैसा? बच्चे के साथ व्यवहार करते हैं, उसी प्रकार उनके साथ व्यवहार करना चाहिए।
अंतिम पल में धर्मध्यान प्रश्नकर्ता : अंतिम घंटों में अमुक लामाओं को कुछ क्रियाएँ करवाते हैं। जब मृत्यु-शय्या पर मनुष्य होता है, तब तिब्बती लामाओं में, ऐसा कहा जाता है कि वे लोग उसकी आत्मा से कहते हैं कि तू इस प्रकार जा अथवा तो अपने में जो गीता-पाठ करवाते हैं, या अपने में अच्छे शब्द कुछ उसे सुनाते हैं। उससे उन पर कुछ अंतिम घंटों में असर होता है क्या?
दादाश्री : कुछ होता नहीं। बारह महीनों के बहीखाते आप लिखते हो, तब धनतेरस से आप बड़ी मुश्किल से नफा करो और घाटा निकाल दो तो चलेगा?
प्रश्नकर्ता : नहीं चलेगा। दादाश्री : क्यों ऐसा? प्रश्नकर्ता : वह तो सारे वर्ष का ही आता है न!
दादाश्री : उसी प्रकार वह सारी ज़िन्दगी का लेखा-जोखा आता है। ये तो, लोग ठगते हैं। लोगों को मूर्ख बनाते हैं।
प्रश्नकर्ता : दादाजी, मनुष्य की अंतिम अवस्था हो, जाग्रत अवस्था हो, अब उस समय कोई उसे गीता का पाठ सुनाए अथवा किसी दूसरे शास्त्र की बात सुनाए, उसे कानों में कुछ कहे...
दादाश्री : वह खुद कहता हो तो, उसकी इच्छा हो तो सुनाना चाहिए।