Book Title: Mrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 15
________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात.. मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... और क्रियाएँ करें उससे पहले ब्राह्मण को दान देते थे। तब दान करने योग्य ही ब्राह्मण थे। वे ब्राह्मण को दान देते तो पुण्य बंधता था। अब तो यह सब जर्जरित हो गया है। ब्राह्मण यहाँ से पलंग ले जाते हैं, उसका सौदा पहले से किया होता है कि बाईस रुपये में तुझे दूंगा। गद्दे का सौदा किया होता है, चद्दर का सौदा किया होता है। हम दूसरा सब देते हैं, कपड़े साधन आदि सब, वे भी बेच देते हैं सभी। ऐसे वहाँ किस तरह सब आत्मा को पहुँचेगा, ऐसा मान लिया लोगों ने? प्रश्नकर्ता : दादाजी अब तो कितने ही लोग ऐसा कहते हैं कि ब्राह्मणों को कह देते हैं कि तू सब ले आना और हम निर्धारित पैसे दे देंगे। सो गए। लोग अपने आप करते हैं और यदि ऐसे कहें कि अपने लिए करो न! तब कहते हैं, 'नहीं भाई, फुरसत नहीं है मुझे।' यदि पिताजी के लिए करने को कहें, तब भी नहीं करें ऐसे हैं ये। लेकिन पड़ोसी कहते हैं, 'अरे मुए, तेरे बाप का कर, तेरे बाप का कर!' वह तो पड़ोसी ठोक-पीटकर करवाते हैं! प्रश्नकर्ता : तो यह गरुड़ पुराण बिठाते हैं, वह क्या है? दादाश्री : वह तो गरुड़ पुराण तो, वे जो रोते रहते हैं न, वे गरुड़ पुराण में जाते हैं, यानी फिर शांति करने के सभी रास्ते हैं ये। वह सब वाह-वाह के लिए प्रश्नकर्ता : यह मृत्यु के बाद बारहवाँ करते हैं, तेरही करते हैं, बरतन बाँटते हैं, भोजन रखते हैं, उसका महत्व कितना है? दादाश्री : वह अनिवार्य वस्तु नहीं है। वह तो पीछे वाह-वाह के लिए करवाते हैं। और यदि खर्च न करें न, तो लोभी होता रहता है, दो हजार रुपये दिलवाए हों तो खाता-पीता नहीं है और दो हजार के पीछे पैसे जोड़ता रहता है। इसलिए ऐसा खर्चा करे तो फिर मन शुद्ध हो जाता है और लोभ नहीं बढ़ता है। परन्तु वह अनिवार्य वस्तु नहीं है। पास में हो तो करना, नहीं हो तो कोई बात नहीं। श्राद्ध की सच्ची समझ दादाश्री: वह तो आज नहीं, कितने ही वर्षों से करते हैं। निर्धारित पैसे दे देंगे, तू ले आना। और वह दूसरे की दी हुई खाट होती है वह ले आता है! बोलो अब! फिर भी लोगों को मानने में नहीं आता. फिर भी गाड़ी तो वैसे चलती ही रहती है। जैन ऐसा नहीं करते। जैन बड़े पक्के होते हैं, ऐसा-वैसा नहीं करते। ऐसा-वैसा कुछ है भी नहीं। यहाँ से आत्मा निकला, तो सीधे उसकी गति में जाता है, योनि प्राप्त हो जाती है। मरनेवाले को नहीं कुछ लेना-देना प्रश्नकर्ता : मरनेवाले के पीछे कुछ भजन-कीर्तन करना या नहीं? उससे क्या फ़ायदा होता है? दादाश्री : मरनेवाले को कोई लेना-देना नहीं है। प्रश्नकर्ता : तो फिर ये अपनी धार्मिक विधियाँ हैं, मृत्यु के अवसर पर जो सभी विधियाँ की जाती हैं, वे सही हैं या नहीं? दादाश्री : इसमें एक अक्षर भी सच्चा नहीं है। यह तो वे गए, प्रश्नकर्ता: ये श्राद्ध में तो पितओं को जो आहवान होता है. वह ठीक है? उस समय श्राद्ध पक्ष में पितृ आते हैं? और कौए को भोजन खिलाते हैं, वह क्या है ? दादाश्री : ऐसा है न, यदि बेटे के साथ संबंध होगा तो आएगा। सारा संबंध पूरा होता है, तब तो देह छूटता है। किसी प्रकार का घरवालों

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