Book Title: Mrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 24
________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात.. मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... होता है। नौ महीने भीतर जीव रहता है तब प्रकट होता है और सात महीनों का जीव हो, तब अधूरे महीनों में पैदा हो गया, इसलिए कच्चा होता है। उसका दिमाग-विमाग सब कच्चा होता हैं। सभी अंग कच्चे होते हैं। सात महीने में पैदा हुआ इसलिए और अट्ठारह महीनों में आया तो बात ही अलग, बहुत हाई लेवल (उच्च कोटी) का दिमाग होता है। अतः नौ महीने से ज्यादा जितने महीने हों, उतना उसका 'टॉप' दिमाग होता है, जानते हो ऐसा? क्यों बोलते नहीं? आपने सुना नहीं कि यह अट्ठारह महीने का है ऐसा! सुना है? पहले सुनने में नहीं आया, नहीं? कि जाने दो, उसकी माँ तो अट्ठारह महीने का है, कहती है ! वह तो बड़ा होशियार होता है। उसकी माँ के पेट में से बाहर निकलता ही नहीं। अट्ठारह महीनों तक रौब जमाता है वहाँ। बीच में समय कितना? प्रश्नकर्ता : यानी यह देह छोड़ना और दूसरा धारण करना, उन दोनों के बीच में वैसे, कितना समय लगता है? दादाश्री : कुछ भी समय नहीं लगता। यहाँ भी होता है, इस देह से अभी निकल रहा होता है यहाँ से और वहाँ योनि में भी हाज़िर होता है, क्योंकि यह टाइमिंग है। वीर्य और रज का संयोग होता है, उस घड़ी। इधर से देह छूटनेवाला हो, उधर वह संयोग होता है, वह सब इकट्ठा हो तब यहाँ से जाता है। नहीं तो वह यहाँ से जाता ही नहीं, अर्थात् मनुष्य की मृत्यु के बाद आत्मा यहाँ से सीधा ही दूसरी योनी में जाता है। इसलिए आगे क्या होगा, इसकी कोई चिन्ता करने जैसा नहीं है। क्योंकि मरने के बाद दूसरी योनि प्राप्त हो ही जाती है और उस योनि में प्रवेश करते ही वहाँ खाना आदि सब मिलता है। उससे सर्जन कारण-देह का जगत् भ्रांतिवाला है, वह क्रियाओं को देखता है, ध्यान को नहीं देखता है। ध्यान अगले जन्म का पुरुषार्थ है और क्रिया. वह पिछले जन्म का पुरुषार्थ है। ध्यान, वह अगले जन्म में फल देनेवाला है। ध्यान हुआ कि उस समय परमाणु बाहर से खिंचते हैं और वे ध्यान स्वरूप होकर भीतर सूक्ष्मता से संग्रहित हो जाते हैं और कारण-देह का सर्जन होता है। जब ऋणानुबंध से माता के गर्भ में जाता है, तब कार्य-देह की रचना हो जाती है। मनुष्य मरता है तब आत्मा, सूक्ष्म शरीर तथा कारण-शरीर साथ जाते हैं। सूक्ष्म शरीर हर एक का कॉमन होता है, परन्तु कारण शरीर हर एक का उसके द्वारा सेवित कॉज़ेज़ के अनुसार अलग-अलग होता है। सूक्ष्म-शरीर, वह इलेक्ट्रिकल बॉडी (तेजस-शरीर) है। कारण-कार्य की-शृंखला मृत्यु के बाद जन्म और जन्म के बाद मृत्यु है, बस। यह निरंतर चलता ही रहता हैं! अब यह जन्म और मृत्यु क्यों हुए हैं? तब कहे कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट, इफेक्ट एन्ड कॉज़ेज़, कारण और कार्य, कार्य और कारण। उसमें यदि कारणों का नाश करने में आए. तो ये सारे 'इफेक्ट' बंद हो जाएँ, फिर नया जन्म नहीं लेना पड़ता है! यहाँ पर सारी ज़िन्दगी 'कॉजेज़' खड़े किए हों, वे आपके 'कॉज़ेज़' किस के यहाँ जाएँगे? और 'कॉज़ेज़' किए हों, इसलिए वे आपको कार्यफल दिए बगैर रहेंगे नहीं। 'कॉज़ेज़' खड़े किए हुए हैं, ऐसा आपको खुद को समझ में आता है? हर एक कार्य में 'कॉज़ेज़' पैदा होते हैं। आपको किसी ने नालायक कहा तो आपके भीतर 'कॉज़ेज़' पैदा होते है। 'तेरा बाप नालायक है' वह आपके 'कॉज़ेज़' कहलाते हैं। आपको नालायक कहता है, वह तो नियमानुसार कह गया और आपने उसे गैरकानूनी कर दिया।

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