Book Title: Mrutyu Samaya Pahle Aur Pashchat
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 25
________________ मृत्यु समय, पहले और पश्चात्... ३८ मृत्य समय, पहले और पश्चात... सभी गतियों में तो केवल 'इफेक्ट' ही है। यहाँ 'कॉजेज' एन्ड 'इफेक्ट' दोनों हैं। हम ज्ञान देते हैं, तब 'कॉज़ेज़' बंद कर देते हैं। फिर नया 'इफेक्ट' नहीं होता है। तब तक भटकना है... वह समझ में नहीं आया आपको? क्यों बोलते नहीं? प्रश्नकर्ता : ठीक है। दादाश्री : अर्थात् 'कॉजेज इस भव में होते हैं। उसका 'इफेक्ट' अगले जन्म में भोगना पड़ता है! यह तो 'इफेक्टिव' (परिणाम) मोह को 'कॉजेज' (कारण) मोह मानने में आता है। आप ऐसा केवल मानते हो कि 'मैं क्रोध करता हूँ' लेकिन यह तो आपको भ्रांति है, तब तक ही क्रोध है। बाकी, वह क्रोध है ही नहीं, वह तो इफेक्ट है। और कॉजेज बंद हो जाएँ, तब इफेक्ट अकेला ही रहता है। और वह 'कॉज़ेज़' बंद किए इसलिए 'ही इज़ नोट रिस्पोन्सिबल फॉर इफेक्ट' (परिणाम के लिए खुद ज़िम्मेदार नहीं) और 'इफेक्ट' अपना प्रभाव दिखाए बिना रहेगा ही नहीं। कारण बंद होते हैं? प्रश्नकर्ता : देह और आत्मा के बीच संबंध तो है न? दादाश्री : यह देह है, वह आत्मा की अज्ञान दशा का परिणाम है। जो जो 'कॉजेज़' किए, उसका यह 'इफेक्ट' है। कोई आपको फूल चढ़ाए तो आप खुश हो जाते हो और आपको गाली दे तो आप चिढ़ जाते हो। उस चिढ़ने और खुश होने में बाह्य दर्शन की कीमत नहीं है। अंतर भाव से कर्म चार्ज होते हैं, उसका फिर अगले जन्म में 'डिस्चार्ज' होता है। उस समय वह 'इफेक्टिव' है। ये मन-वचन-काया तीनों 'इफेक्टिव' हैं। 'इफेक्ट' भोगते समय दूसरे नये 'कॉज़ेज़' उत्पन्न होते हैं, जो अगले जन्म में फिर से 'इफेक्टिव' होते हैं। इस प्रकार 'कॉज़ेज़ एन्ड इफेक्ट', इफेक्ट एन्ड कॉजेज़' यह क्रम निरंतर चलता ही रहता 'इफेक्टिव बॉडी' अर्थात् मन-वचन-काया की तीन बेटरियाँ तैयार हो जाती हैं और उनमें से फिर नये 'कॉज़ेज़' उत्पन्न होते रहते हैं। अर्थात् इस जन्म में मन-वचन-काया डिस्चार्ज होते रहते हैं और दूसरी तरफ भीतर नया चार्ज होता रहता है। जो मन-वचन-काया की बेटरियाँ चार्ज होती रहती हैं, वे अगले भव के लिए हैं और ये पिछले भव की हैं, वे हाल में डिस्चार्ज होती रहती हैं। 'ज्ञानी पुरुष' नया 'चार्ज' बंद कर देते हैं। इसलिए पुराना 'डिस्चार्ज' होता रहता है। इसलिए मृत्यु के पश्चात् आत्मा दूसरी योनि में जाता है। जब तक खुद का 'सेल्फ का रियलाइज' (आत्मा की पहचान)नहीं होता, तब तक सभी योनियों में भटकता रहता है। जब तक मन में तन्मयाकार होता है, बुद्धि में तन्मयाकार होता है, तब तक संसार खड़ा रहता है। क्योंकि तन्मयाकार होना अर्थात् योनि में बीज पड़ना और कृष्ण भगवान ने कहा है कि योनि में बीज पड़ता है और उससे यह संसार खड़ा रहा है। योनि में बीज पड़ना बंद हो गया कि उसका संसार समाप्त हो गया। विज्ञान वक्रगतिवाला है प्रश्नकर्ता : “थियरी ऑफ इवोल्युशन' (उत्क्रतिवाद) के अनुसार जीव एक इन्द्रिय, दो इन्द्रिय ऐसे 'डेवलप' होता-होता मनुष्य में आता है और मनुष्य में से फिर वापस जानवर में जाता है। तो यह 'इवोल्युशन थियरी' में जरा विरोधाभास लगता है। वह ज़रा स्पष्ट कर दीजिए। दादाश्री : नहीं। उसमें विरोधाभास जैसा नहीं है। 'इवोल्युशन की है। केवल मनुष्य जन्म में ही 'कॉज़ेज़' बंद हो सकें ऐसा है। अन्य

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