Book Title: Moksh Marg Prakashak ka Sar
Author(s): 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 23
________________ ४४ मोक्षमार्गप्रकाशक का सार उनके पंचेन्द्रिय विषय-सेवन की इच्छा बहुत है और विषय-सामग्री का पूर्णतः अभाव है; अतः वे अत्यन्त दुःखी हैं। उनके कषायों की तीव्रता अत्यधिक है और उनके कृष्णादि अशुभ लेश्यायें ही होती हैं। इस कारण भी वे बहुत दुःखी हैं। मोक्षमार्गप्रकाशक में निरूपित नरकगति में जीवों के दुखों का वर्णन छहढ़ाला में पण्डित दौलतरामजी अति संक्षेप में इसप्रकार करते हैं ह्र तहाँ भूमि परसत दुःख इसो, बिच्छू सहस डसैं नहिं तिसो। तहाँ राध-शोणित वाहिनी, कृमि-कुल कलित देह दाहिनी ।।९।। सेमर तरु दल जुत असिपत्र, असि ज्यौं देह विदारै तत्र । मेरु-समान लोह गलि जाय, ऐसी शीत उष्णता थाय ।।१०।। तिल-तिल करैं देह के खण्ड, असुर भिड़ावै दुष्ट प्रचण्ड। सिंधु-नीर तैं प्यास न जाय, तो पण एक न बूंद लहाय ।।११।। तीन लोक को नाज जुखाय, मिटै न भूख कणा न लहाय। ये दुःख बहु सागर लौं सहे, करम-जोग तैं नरगति लहै ।।१२।। नरक की भूमि इसप्रकार की होती है कि जिसे छूते ही ऐसी पीड़ा होती है कि जैसी पीड़ा हजार बिच्छुओं के काटने से भी नहीं होती। वहाँ की खून और पीप से भरी हुई देह को जला देनेवाली भयंकर नदियाँ कीड़े-मकोड़ों से भरी हुई होती है। सेमर नामक वृक्षों के तरवार की धार के समान पत्ते उनके शरीर को उसीप्रकार चीर देते हैं, जिसप्रकार तलवार शरीर को चीर देती है। सर्दीगर्मी ऐसी पड़ती है कि यदि मेरु के समान विशाल लोहे का गोला वहाँ डाला जाय तो वह गर्मी से गल जायेगा और सर्दी से क्षार-क्षार हो जायेगा। असुर जाति के देव जाकर उन्हें परस्पर लड़ाते हैं, जिससे वे परस्पर एक-दूसरे की देह के खण्ड-खण्ड कर डालते हैं। समुद्रों पानी पी लेने पर भी प्यास न बुझे ह्न ऐसी भयंकर प्यास लगती है, फिर भी पानी की एक भी बूंद प्राप्त नहीं होती। इसीप्रकार तीन लोकों तीसरा प्रवचन में प्राप्त सम्पूर्ण अनाज खा जावे, तब भी भूख नहीं मिटे ह्र ऐसी भूख लगती है, पर खाने को एक कण भी प्राप्त नहीं होता। नरकों में इस जीव को इसप्रकार के दुःख अनेक सागरों पर्यन्त भोगने पड़ते हैं। प्रश्न ह्न अनाज मात्र मध्यलोक में ही पैदा होता है, वहाँ भी सभी जगह नहीं; क्योंकि पृथ्वी के तीन चौथाई भाग में तो पानी ही पानी है। जहाँ जमीन है, वहाँ भी तो सब जगह अनाज पैदा नहीं होता। ऐसी स्थिति में तीन लोक के अनाज को खाने की बात क्या ठीक है? ___ उत्तर तू अरे भाई ! अनाज कहाँ-कहाँ पैदा होता है और कहाँ नहीं ह्र यह बात यहाँ नहीं है। यहाँ तो यह बताया जा रहा है जहाँ और जितना अनाज पैदा होता है; यदि वह सभी खा जावे तो भी नारकी को तृप्ति नहीं होगी। ह्र ऐसा कहकर उनकी भूख की भयंकरता का ज्ञान कराया है। ___ नरकगति और तिर्यंचगति में दुःख हैं; यह तो सभी लोग मानते हैं; परन्तु मनुष्य व देवगति में भी दुःख ही दुःख हैं ह्र यह बात सभी को सहज स्वीकार नहीं होती है। ___ पण्डित टोडरमलजी ने इस तीसरे अधिकार में मनुष्यगति और देवगति के जीव भी दुःखी हैं ह्र इस बात को सयुक्ति समझाया है; जिसका सार छहढ़ाला में पण्डित दौलतरामजी इसप्रकार प्रस्तुत करते हैं ह्न जननी उदर बस्यो नव मास, अंग-सकुचतँ पायो त्रास । निकसत जे दुःख पाये घोर, तिनको कहत न आवे ओर ।।१३।। बालपने में ज्ञान न लह्यौ, तरुण समय तरुणीरत रह्यो। अर्द्धमृतक-सम बूढ़ापनो, कैसे रूप लखै आपनो ।।१४ ।। कभी अकाम-निर्जरा करै, भवनत्रिक में सुरतन धरै । विषयचाह-दावानल दह्यो, मरत विलाप करत दुख सह्यो।।१५।। जो विमानवासी हू थाय, सम्यग्दर्शन बिन दुःख पाय । तहँ तैं चय थावर-तन धरै, यों परिवर्तन पूरे करै ।।१६।।

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