Book Title: Moksh Marg Prakashak ka Sar
Author(s): 
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 52
________________ मोक्षमार्गप्रकाशक का सार १०२ नक्कारखाने में कौन सुनता है तुम्हारी इस तूती की आवाज को; इस पर हम कहना चाहते हैं कि हमारी तो तूती बोल ही रही है और बोलती भी रहेगी, जिनका भाग्य होगा, वे सुनेंगे और जिनके भाग्य में नहीं होगा, नहीं सुनेंगे। उनके लिए तो पण्डित टोडरमलजी लिखते हैं ह्र " जिसप्रकार बड़े दरिद्री को अवलोकनमात्र चिन्तामणि की प्राप्ति हो और वह अवलोकन न करे, तथा जैसे कोढ़ी को अमृत पान कराये और वह न करे; उसीप्रकार संसार पीड़ित जीव को सुगम मोक्षमार्ग के उपदेश का निमित्त बने और वह अभ्यास न करे तो उसके अभाग्य की महिमा हमसे तो नहीं हो सकती। उसकी होनहार ही का विचार करने पर अपने को समता आती है। कहा है कि ह्न साहीणे गुरुजोगे जे ण सुणंतीह धम्मवयणाइ । ते धिट्ठट्ठचित्ता अह सुहडा भवभयविहुणा ।। स्वाधीन उपदेशदाता गुरु का योग मिलने पर भी जो जीव धर्मवचनों को नहीं सुनते, वे धीठ हैं और उनका चित्त दुष्ट है। अथवा जिस संसारभय से तीर्थंकरादि डरे, उस संसारभय से रहित हैं, वे बड़े सुभट हैं। " एक मदारी था, जो गाँव-गाँव में, चौराहे चौराहे पर बंदर को नचानचाकर लोगों का मनोरंजन किया करता था। एक दिन एक गाँव के बाजार में एक दुकान के सामने उसने अपनी डुगडुगी बजाना शुरू की तो बन्दर का खेल देखने के लिए बच्चों की भीड़ इकट्ठी होने लगी। दुकानदार सेठ ने आकर कहा ह्न “चलो, हटो यहाँ से हमारी दुकान के सामने तुम यह मजमा नहीं लगा सकते।” मदारी ने हाथ जोड़कर कहा ह्न “बस, आधा घंटे का काम है, दिखा लेने दो बंदर का खेल। किराये के रूप में तुम्हारे बच्चे और तुम खेल को मुफ्त में देख लेना । " पर सेठ नहीं माना और बार-बार कहने लगा ह्न “हटो यहाँ से, वरना........ 27 १. मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ- २० सातवाँ प्रवचन १०३ उसका यह रुख देखकर मदारी बोला ह्न “सुनो सेठजी, हमने तो यह काम चुना है सो अब हमें तो जिन्दगी भर डुगडुगी ही बजाना है, बन्दर का खेल ही दिखाना है; यहाँ न सही, तो दूसरी जगह, इस गाँव में नहीं तो दूसरे गाँव में। भारत में सात लाख गाँव हैं। इसलिए हमारी यह डुगडुगी तो बजेगी ही, बंद होनेवाली नहीं है। सोच लो सेठजी, तुम और तुम्हारे बच्चे खेल देखे बिना ही रह जायेंगे।" इसीप्रकार हमारा भी यही कहना है कि हमने तो वीतरागी तत्त्वज्ञान का डंका बजाने का कार्य अपनाया है, सो अब तो यह डंका जिन्दगी भर बजाना ही है; इस गाँव में न सही तो दूसरे गाँव में, उसमें भी नहीं तो तीसरे गाँव में। भारत में सात लाख गाँव हैं और भी सारी दुनिया पड़ी है। अतः हमारा काम तो रुकनेवाला नहीं है। हमारी डुगडुगी तो बजनेवाली ही है, हमारी तूती तो बोलनेवाली ही है। अब आप अपनी सोचिये । यदि आपने विरोधभाव रखा, विरोध किया तो आप ही इस वीतरागी तत्त्वज्ञान से वंचित रह जायेंगे, आपका मनुष्य भव व्यर्थ के कामों में और अनर्गल भोगों में चला जायेगा। उसके बाद न जाने चार गति और चौरासी लाख योनियों में कहाँ-कहाँ घूमना होगा ? इसलिए हमारा कहना तो यही है कि आप भी हमारी बात पर ध्यान दें, व्यर्थ के विवाद से कोई लाभ नहीं है। इसके बारे में सोचा है कभी आपने ? यदि नहीं तो जरा सोचिये, गंभीरता से विचार कीजिये, अन्यथा यह भव यों ही चला जावेगा। अरे, भाई ! गृहीत मिथ्यात्व का यह निरूपण पण्डित टोडरमलजी ने जान की बाजी लगाकर किया है। उन्होंने किसी के विरुद्ध कुछ नहीं किया, कुछ नहीं कहा, कुछ नहीं लिखा; उन्होंने तो यह महान कार्य भूले-भटके लोगों को सन्मार्ग पर लाने के लिए किया था, मिथ्यात्व के महापाप से बचाने के लिए किया था। और उनका यह प्रयास अत्यन्त उपयोगी सिद्ध हुआ है, क्योंकि उनके मोक्षमार्गप्रकाशक ने विगत २५०

Loading...

Page Navigation
1 ... 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77