Book Title: Meru Trayodashi Mahatmya Ane Devdravya Bhakshan Ka Natija Author(s): Mansagar Publisher: Hindi Jainbandhu Granthmala View full book textPage 6
________________ (३) अर्थः-पुत्र बिना गृह शून्य, मित्र बिना दिशा शून्य, ज्ञान बिना मूर्ख का हृदय शून्य और दरिद्र को सब जून्य लगता है. ___ इसलिये पुत्र बिना घर कदापि नहीं शोभता. यह विचार करके पुत्र प्राप्ति के लिये अनेक उपाय किये किन्तु सब व्यर्थ हुए। इसी अवसर में कोणिक नामक एक साधु आहारार्थ राजा के गृह पर आया. उसको सन्मुख आता देखकर राजा, रानी दोनों हर्षित होकर उठे । विधि पूर्वक वंदन करके शुद्ध आहार बहोराया, और हाथ जोडकर पूछने लगे कि हे स्वामिन् ! हमारे पुत्र होगा कि नहीं? यह सुनकर साधु ने कहा कि हे राजन् ! ज्योतिष निमित्त संबन्धी प्रश्नों का उत्तर देना यह साधु का धर्म नहीं। यह सुन पुनःराजा और रानी साधु की अनेक प्रकार से विनंती कर पूछने लगे। यह देख साधु के मनमें करुणा उत्पन्न हुई । इससे वह राजासे कहने लगा, कि देखो, आप धर्मध्यान, प्रभुपूजा आदि करो, इससे अंतराय टूटेगा और तुम्हारे पुत्र होगा, किन्तु वह पंगु (लंगडा) होगा. यह कह करPage Navigation
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