Book Title: Meru Trayodashi Mahatmya Ane Devdravya Bhakshan Ka Natija
Author(s): Mansagar
Publisher: Hindi Jainbandhu Granthmala

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Page 8
________________ उसके अन्तर्गत ब्रह्मपुर नामक नगर में इक्ष्वाकु वंशीय, काश्यप गोत्रीय सत्यरथ राजा था । उसकी पट्टरानी का नाम इन्दुमती था । उसके गर्भ से गुणसुन्दरी नामक पुत्री उत्पन्न हुई। यह राजकुमारी अत्यन्त रूप लावण्य गुण युक्त थी, तथा इस राजा के भी पुत्र नहीं था. इस कारण राजकुमारी माता पिताओं को बड़ी ही प्यारी थी। क्रमशः यह राजपुत्री पढ गुण कर चौसठों कलाओं में निपुण होगई, और यौवनावस्था को भी प्राप्त हुई । कुमारी की यह अवस्था देखकर उसके पिता उसके समान ही किसी स्वरुपवान् वर की शोध करने लगे । परन्तु उसके योग्य वर कहीं नहीं मिला । इससे राजा को बड़ी चिन्ता होने लगी। इसी अवसर में नगर के बहुत से व्यापारी गाडियों में नाना प्रकार का किराना भर कर व्यापार के अर्थ देशदेशान्तर जाने लगे । राजाने उनको बुलवाकर कहा कि, तुम देश देशान्तर जाते हो, वहां अपनी राजकुमारी के योग्य कोई जगह यदि सुयोग्य वर मिल जाय तो सगपन (संबंध) कर आना. व्यापारी गण राजा का वचन स्वीकार कर रवाना हुए।

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