Book Title: Meru Trayodashi Mahatmya Ane Devdravya Bhakshan Ka Natija
Author(s): Mansagar
Publisher: Hindi Jainbandhu Granthmala

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Page 24
________________ ( २१ ) तेरह वर्ष पर्यन्त विधि पूर्वक उसने मेरु त्रयोदशी का तप किया. तप पूर्ण होने पर शक्त्यानुसार उद्यापन किया, भगवान के बडे २ शिखरबंध तेरह देवालय बनवाये, उनमें तेरह प्रतिमाएं स्वर्ण की, तथा तेरह प्रतिमाएं रोप्य (चांदी) की, और तेरह प्रतिमाएं रत्न की स्थापित की । तेरह प्रकार के रत्नों से पांच मेरु बनवाकर चढ़ाये । तेरह वक्त श्री सिद्धाचलजी के संघ निकाले, तेरह स्वामिवात्सल्य किये. तेरह तेरह साधुके उपगरण पात्रा, तरपणी, दांडे, ओघा, कंवल आदि रखे और तेरह तेरह मंदिर के उपगरण कटोरी, कलश, चंद्रवा, एंठीआ, तासक, वालाकुंची, धूपदानी, धोती, उत्तरासन, मुखकोस, अंगलूहणा इत्यादि रखे. और तेरह तेरह चारित्र के उपकरण, कटासणा, मुहपत्ती, धोती, चरवले, नवकारवाली आदि रखके शासनोन्नत्ति की. इस भांति अनेक प्रकार से ज्ञान की भी भक्ति की । इसके बाद भी कितने ही पूर्व वर्ष पर्यन्त व्रत महित राज्य का पालन किया और अन्त में अपने पुत्र महसेन को राज्य पद दे आपने श्री

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