Book Title: Meru Trayodashi Mahatmya Ane Devdravya Bhakshan Ka Natija
Author(s): Mansagar
Publisher: Hindi Jainbandhu Granthmala

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Page 25
________________ ( २२ ) सुव्रताचार्य गुरु के पास बहुत से राज्यपुरुषो सहित दीक्षा अंगीकार करके द्वादशाङ्गी पढा, और आचार्य पदवी पाई । इसके पश्चात् क्षपक श्रेणी चढने के लिये अष्टम गुणस्थान में शुक्ल ध्यान धरते हुए चारित्र का पालन कर क्रमशः बारहवें गुण स्थान पर चढ उसके अंत समय में चतुर्घातिक ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय, अंतराय कर्मो का क्षय कर तेरहवें गुण स्थान के प्रथम समय में केवलज्ञान प्राप्त किया तत्पश्चात् पृथ्वीमंडल में विहार करता हुआ, बहुत से भव्य प्राणियों को प्रतिबोध देता हुआ, सर्व बहत्तरलक्ष पूर्व का आयु पालन कर चौदहवें गुण स्थान में पांच हस्व अक्षर के समान कालमें योग निरोधन कर शेष रहे हुए चतुरघातिक कर्म वेदनीय नाम, आयुष्य, गोत्र का क्षय कर, शरीर त्याग, पूर्व प्रयोग से बंधन छेदन आदि कर एक योजन प्रमाण लोकान्त पर सिंद्ध क्षेत्र में एक समय में सादि अनन्त भाग में स्थिर हो रहा । इस भांति पिंगल राजा से इस भेरु त्रयोदशी: का व्रत प्रवर्तमान हुआ । उसके बाद कुछ समय ·

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