Book Title: Meru Trayodashi Mahatmya Ane Devdravya Bhakshan Ka Natija
Author(s): Mansagar
Publisher: Hindi Jainbandhu Granthmala

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Page 22
________________ (१९) के कर्मों की निवृत्ति हो जाय । मुनिराज ने कहा कि, हे राजन् ! तीसरे आरे के अंतिम तीन वर्ष और साढे आठ मास शेष रहे थे, उस समय माघ (माह ) कृष्ण त्रयोदशी के दिन श्री ऋषभदेव स्वामी का निर्वाण कल्याण हुआथा. इस से इस दिन का बडा भारी माहात्म्य है. व्रत विधी। इसका बडा पर्व मानकर उस दिन चौविहार उपवास करना, रत्न के पांच मेरु बनाना, चारों दिशाओं में चार छोटे मेरु बनाना, उनके आगे चारों दिशाओं में नन्दावर्त करना, दीप धूप आदि अनेक प्रकार से पूजन करना, इस भांति तेरह मास अथवा तेरह वर्ष पर्यन्त करना, और श्री ऋषभदेव स्वामी के · ॐ ह्रीं श्रीं ऋषभदेव पारंगताय नमः' ऐसे दो हजार जाप करना, नौकारवाली गिनना इसं भांति प्रतिमास करे तो कर्म का क्षय होवे, इस भव तथा परभव में सुख संपत्ति पावे । और त्रयोदारी के दिन पौषध करे तथा पारणे (पुनभॊजन ) के दिन गुरु को पडिलाभी अतिथि संविभाग कर पश्चात् भोजन करे।

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