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मथुरामें जैन संघका अधिवेशन रहेगा ? अतः जिन जीवोंको संसार बन्धनसे मुक्त होनेकी अभिलाषा हो उन्हे प्राणपन–पूर्ण प्रयत्नसे सर्व प्रथम इसका निर्मूल उच्छेद करना चाहिये। इसके होने पर जो कार्य करोगे वही सफल होगा।
यहाँ पर आगरासे भी अनेक महानुभाव आये थे। यहीं पर एक क्षत्रिय महोदय भी मिले। आपने अपने ग्राम ले जानेका
आरम्भ किया। आपका ग्राम वहीं था जहाँ श्री सूरदासजी ने जन्म लिया था। ग्रामका नाम रुनकता था और क्षत्रिय महोदयका नाम ठाकुर अमरसिह था। आप डाक्टर थे और कवि भी। आपने अपनी कविता सुनाई। रात भर इसी रुनकता ग्राममे रहे। ठाकुर साहवका अभिप्राय था कि एक दिन यहाँ निवास किया जावे तथा हमारे गृह पर आप पधारें, हमारे कुटुम्बीजन आपका दर्शन कर ले तथा वहीं पर आपका भोजन हो तब हमारा गृह शुद्ध होवे । परन्तु हृदयकी दुर्वलता और लोगोंकी १४४ धाराने यह न होने दिया। मुख्यतया इसमे हमारी दुर्वलता ही वाधक हुई। यहाँसे चले तो ठाकुर साहब वरावर जिस ग्राममे हमने निवास किया वहाँ तक आये तथा कहने लगे क्या यही जैनधर्म है ? जिस धर्ममे प्राणी मात्रके कल्याणका उपदेश है आप लोगोंने अभी उसके मर्मको समझा नहीं। हमे ढ़ विश्वास है कि धर्मका अस्तित्व प्रत्येक जीवसे है किन्तु उपचारसे वाह्य कारण माने जाते हैं। आप लोग भी इस बातको जानते हैं कि वाह्य कारणोंमें उलझना अच्छा नहीं। जब आप लोग व्याख्यान करते हैं तब ऐसे ऐसे शब्दोंका प्रयोग करते हैं कि जिन्हे श्रवण कर अन्य प्राणी मोहित हो जाते हैं। हमने कई स्थानों पर श्रवण किया 'मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थानि च सत्त्वगुणाधिक क्लिश्यमानाविनयेपु' अर्थात् प्राणीमात्रमे मैत्री भावना आना चाहिये। मैत्रीका अर्थ है किसी प्राणीको दुःख