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वर्णीजी वयोवृद्ध हैं। मैं ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ कि उन्हें अपने पितामहकी आयु प्राप्त हो, जिससे कि वे जैन समाज ही नहीं समस्त भारतीय समाजका उत्तरोत्तर कल्याण कर सकें। उनकी 'आत्मकथा' लोगोंको विद्यानुरागी, त्यागी, दृढ़प्रतिज्ञ तथा धर्मनिष्ठ बनावें, यही मेरी इच्छा है।
सेमिनरी हिल नागपुर
द्वारकाप्रसाद मिश्र
२/४/१६४६
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