Book Title: Meri Jivan Gatha
Author(s): Ganeshprasad Varni
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 10
________________ दार्शनिक विचारों में फिरसे मौलिकताका जन्म होगा। मार्क्सवाद बिल्कुल उथला तथा थोथा है। अपनी मणियोंको तिरष्कृत कर हम काँचको ग्रहण करने जा रहे हैं। परन्तु हमारे नवयुवक तो पारखी नहीं हैं। जब तक हम दोनोंका तुलनात्मक अध्ययन कर उनकी भूल न प्रमाणित कर देंगे तब तक वे काँचको ही मणि समझकर ग्रहण करते जावेंगे। इसमें हमारे नवयुवकोंकी अपेक्षा हमारा ही अपराध अधिक है। ___ वर्णीजीने गुरुकुलोंकी स्थापना करनेमें महान् योग दिया है। मैं इन गुरुकुलोंका बड़ा पक्षपाती हूँ, पर हमें इनमें आधुनिकता लानेका भी प्रयत्न करना होगा। कठिनाई यह है कि जो हमारे प्राचीन ग्रन्थों के विद्वान् हैं वे नई विचारधारासे अपरिचित हैं और जो नई विचारधारामें डूबे हुए हैं वे प्राचीन साहित्यके ज्ञानसे कोरे हैं। जब तक दोनोंका समन्वय न होगा तब तक हमारा प्राचीन ज्ञान आजकी सन्ततिका उपकार न कर सकेगा। नयी धारावाले हमारे नवयुवकों की आँखें पाश्चात्य विज्ञानके आविष्कारोंसे चौंधियाँ गईं हैं। कठिनाई तो यह है कि विज्ञानकी नवीनतम प्रगतिसे भी वे अपरिचित हैं। भारतको राजनैतिक स्वराज्य अवश्य प्राप्त हो गया है, परन्तु हमारी मानसिक गुलामी अब भी कायम है। योरोपमें जिस प्रकारके फर्निचरका प्रचलन सौ साल पहले था और जिसे अब वहाँ कोई नहीं पूछता उसकी कद्र भारतमें नये फैशनके रूपमें होती है। इसी प्रकार जो विज्ञान अब योरोपमें पुराना हो गया है उसे आज भी हमारे विश्वविद्यालयमें विद्यार्थियोंको वेदवाक्य मानकर पढ़ाया जाता है। दो शताब्दी पूर्व जब योरोपमें विज्ञानकी प्रगति हुई तो उसे धर्मका शत्रु मान लिया गया। भारतीय विद्यार्थी आज भी वही माने बैठे हैं। परन्तु पिछले पच्चीस वर्षों में ही योरोपमें विज्ञानकी और भी प्रगति हुई है। विशेषकर मनोविज्ञानके क्षेत्रमें तो इतनी उन्नति हुई है कि भौतिकवादकी जड़ें ही हिल गयी हैं। अब विज्ञानके अनुसार भी ‘पदार्थ' (matter) पदार्थ न रहकर 'मन' की रचना मात्र रह गया है। ‘सापेक्षवाद' (Theory of Relativity) का प्रभाव भी वैज्ञानिकों के चिन्तनपर पड़ने लगा है। विज्ञान स्वयं ही अब ‘पदार्थ' में सृष्टिका मूल न पाकर 'नेति, नेति' कहने लगा है। पदार्थविज्ञान अब गौण और मनोविज्ञानमें भारतीयोंने जो खोज प्राचीनकालमें की थी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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