Book Title: Meghdoot Khandana
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 1
________________ 38 अनुसन्धान ३२ पं. मानसागरकृत मेघदूत-खण्डना ॥ अपूर्ण ॥ सं. विजयशीलचन्द्रसूरि 'मेघदूत' ए महाकवि कालिदासनी अनुपम अमर काव्यकृति छे. आ काव्यनी अनुकृतिरूपे के समस्या(पाद) पूर्तिरूपे केटकेटला दूतकाव्यो जैनजैनेतर विद्वानो द्वारा रचायां छे ! सिद्धदूत, शीलदूत, चेतोदूत, चन्द्रदूत, नेमिदूत, मेघदूतसमस्यालेख, इन्दुदूत, मयूरदूत - अने एवां तो अढळक काव्यो जडे छे, जे मेघदूतना प्रत्येक श्लोकना एक-मोट भागे अन्तिम चरणने उपाडीने बाकीनां ३ चरणोनी नवी रचनारूप होय. मेरुतुङ्गाचार्ये तो वळी 'जैनमेघदूत' पण रची आप्युं ! तो केटलाये जैन मुनिओए मेघदूत पर टीका पण लखी छे. सन्देश-व्यवहार ए आपणी-मानवीय संस्कृतिना विकासनुं एक महत्त्वपूर्ण बिन्दु छे. स्थूल के बाह्य व्यवहार जगतमा सन्देशव्यवहार, जेम खास मूल्य छे, तेम मनुष्यना भावजगतमां, स्नेह, मैत्री, भक्ति वगेरेरूप भावात्मक के लागणीओना जगतमां पण सन्देशव्यवहारर्नु मोटुं मूल्य छे. आ मूल्य कालिदासने सौथी वहेलुं अने वधु समजायुं एटले तेणे तेनो मेघदूतमा विनियोग को. 'इश्के मिजाजी'नी आ काव्यरचना एक अपार्थिव अने तेथी अलौकिक प्रीतिनी कथा वर्णवती रचना छे. पछीथी घणा कविओ आने अनुसर्या छे, अने 'मेघ' जेवा विविध पदार्थोने भौतिक परिवेश अीने तेना द्वारा पोतानां पात्रो वच्चे सन्देश-व्यवहार करावतां रह्या छे. जैन कविओनं चित्त 'इश्के हकीकी' प्रति वधु ढळतुं होय छे. एटले तेमणे रचेलां आ पादपूर्तिरूप दूतकाव्योनो सूर, संसारस्थ प्राणीनो परमात्मतत्त्व साथेना सन्देश-व्यवहारनो रह्यो छे. क्यारेक पोताना इष्ट परमात्मा साथे पत्रसन्धान के वार्तालाप, क्यारेक आत्मबोध, तो क्यारेक पोताना पूज्य गुरुजनो प्रत्ये विज्ञप्ति - एम विविध भावो प्रगटावतां आ दूत- पत्र-काव्यो जैन कविओ द्वारा रचायां छे. तेमांनां घणां बधां प्रसिद्ध पण थयां छे. अत्रे जे रचना प्रगट थई रही छे, ते उपरोक्त तमाम रचनाओ करतां तद्दन जुदीज भातनी रचना छे, आ रचना नथी समस्या (पाद) पूर्तिरूप के नथी अनुकृतिरूप. आमां तो कालिदासना मूळ मेघदूतने यथावत् रहेवा दईने तेना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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