Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 4
________________ य॥७॥ प्रिनेद ते धर्म बे, आगारी अणगार ॥ व्रत पण छादश पंच तिहां, तेहना विविध प्रकार ॥ ॥ मृषावाव्रत द्वितीय ए, मृषातणो परिहार ॥ सत्यवचन श्राराधिये, तो वरिये शिवनार ॥ ए॥ कूट मृषा तजतां थका, धरिये श्म प्रतिबंध ॥ सत्य वचन ऊपर सुणो, मानवतीसंबंध ॥ १० ॥ अतिहि कौतुकनी कथा, सांजलजो चित लाय ॥ मत कर जो श्रोता सकल, बधिरगीतनो न्याय ॥ ११॥ ॥ ढाल पहेली चोपाईनी देशी ॥ ॥ मानांगुल जोयण एक लाख ॥ वटविष्कंन जं बेनो नाख ॥ जगती आठ जोयण उच्चंत ॥ बार चार धुर ऊवरि दंत॥१॥चार अनुत्तर नामे हार॥ जंचत आठ जोयण विस्तार ॥ पंचसयां धनु तिहां वेदिका ॥ लीजे जोयण सवि देवका ॥२॥ कुल गिरीले जंबूमकार ॥ सातमो मध्य मेरु वनधार ॥ क्षेत्र सातवलि तिहां आयंत ॥ नरततणी सीमा हि मवंत ॥३॥ तेह जरतनो जोयणमान ॥ पांचसे न विस उ कला जाण ॥बीजा देत्रतणा अधिकारले जो शास्त्रथकी सुविचार ॥४॥ ददणनरते मालव देश ॥ नहि रौरव वली नही कलेश ॥श्रवर देसजे Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 ... 132