Book Title: Mantung Raja ane Manvati Ranino Ras Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 3
________________ अथ सत्यवचन उपरें ॥ मोहनविजयजी विरचित ॥ ॥श्रीमानतुंगराजा अने मानवती राणीनो रास प्रारंनः॥ ॥ दोहा ॥ ॥ षनजिणंद पदांबुजे, मनमधुकर करि लीन॥ आगमगुणसौरज्यवर, अतिवादरथी कीन ॥१॥ यानपात्रसम जिनवरू, तारण नवनिधितोय ॥ आप तस्या तारे अवर, तेहनें प्रणिपति होय २॥ अथ सरखतीवर्णनम् ॥ नावें प्रणमुं नारती, वरदाता सुविलास ॥ बावन अदरथी नस्यो, अखय खजानो जास ॥३॥ शुक्र कस्या केईशनीथकी, एहवी जेहनी शक्ति ॥ किम मूकाए तेहना, पदनी कोविद नक्ति ॥४॥ गुरुवर्णनम् ॥ गुरु गुण अगणित कुण गणे, तारक कवण गणंत ॥ कुण तर्जनीअंगुलिसिरें, धरणी अधर धरंत ॥ ५॥ अद्वितीय दीपक सुगुरु, करता झानप्रकास ॥ पण हर्ता अज्ञानतम, सेतस थ दास ॥ ६॥ जिनागमवरदा सुगुरु, तेहना प्रणमी पाय ॥ धरमतणा अधिकारथी, छिवृद्धि नित था Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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