Book Title: Mantrakalpa Sangraha tatha Gandhar Jayghoshstotradi
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Mandavala Jain Sangh
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मन्त्रकल्प संग्रह
व्यक्तं शिवं शिववधूपरिरम्भयुक्त,
सिद्ध बुधं निरवधि परमव्ययञ्च ॥७॥ नीरञ्जन निरुपधिं विगतस्पृहञ्च,
निर्बाधमाधिरहितं सहितं कलाभिः। .. धातारमीशमगलं विमलं ह्यनन्तं,
पारंगत गतभयं शरणं शरण्यम, ॥८॥ निर्मोहमन्त्यमममं निरुजं विमानं
त्रैलोक्यलोकमहितं विगुणं गुणाढ्यम । सूक्ष्म निराश्रयमनुत्तममुत्तमञ्च,
क्षीणाष्टकर्मपटल परमं पवित्रम् ॥९॥ पार्श्वस्थितोरगपति प्रथितप्रभाव
पद्मावतीपरिगतं. वलयवंत तु। मायाक्षरत्रिवलयं जिनयक्ष-यक्ष
योषिद्युतं ग्रहगणैः सुरलोकपालैः ।।१०॥ श्रीअश्वसेनतनयं विनयावनम्र- . .
___ देवेन्द्रमौलिमणिरञ्जितपादयुग्मम् । द्वय सालकद्विभुजसन्धिगुदान्तकोण
षट्कोणयन्त्रगतमादरतो नमामि ॥११॥ कुलकम पाषाण १ दुविष२ शरे३ भरियु४ प्रहार
मेघाम्बुश्वाहकरकाशनि६ सन्निभैस्तु। वाक्यैर्जघान शमिनं जिनमाप्य तस्माद,
शान्ति दिदेश कमठः शठतोज्झितोऽयम ॥१२॥ श्रीस्तम्भनेऽपरमतोऽकृत चावतारं,
वामासुता परिचितोऽभयदेवसूरेः ।। कुष्टं पिनष्टि गलदङ्गमसौ स्म तस्य,
वृति च कार गुरुरेष यतो नवाङ्गया ॥१३॥
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