Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijay Shastra Sangraha Samiti

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Page 530
________________ ( ४८० ) चतुन महादीपानं, इस्सरं योध कारये । एतस्सा चामदानस्स, कलं नाग्चंति सोलसीम् ॥१०॥ (विमान वत्थु पृ० १६ ) अर्थ-सर्वाङ्ग सौन्दर्ययुक्त ऐसी पति को अनुपम प्रेम दिखलाने पाली कल्याणी स्त्री का दान भी इस आचाम कलम शालि ओदन दान की सोलहवीं कला को नहीं पा सकता। मणिकुण्डलों से विभूषित लाख कन्याओं का दान भी इस आचाम कलम शालि ओदन के दान की सोलहवीं कला को प्राप्त नहीं कर सकता। - ईशा के सदृश दांत और उरू के सदृश शुण्डादण्ड वाले सुवर्ण से भूषित सौं हाथियों का दान भी इस आचाम दान की सोलहवीं कला को प्राप्त नहीं कर सकता। कोई चार महादीपों का ऐश्वर्य प्रदान कर दे फिर भी वह दान इस आचाम दान की सौलहवीं कला को प्राप्त नहीं कर सकता । यजमानं मनुस्सान पुञ्जपेखान पाणिनं । करोतं ओपधिकं पुजं संघे दिन महप्फलं ॥२४॥ एसोहि संघो विपुलो महग्गतो, एसप्पमेय्यो उदधीवसागरो। एतेहि सेट्ठा नर विरिय सावका, पभङ्करा धम्मकथमुदीरयंति॥२५ तेसं सुदिन्नं सुहुतं सुयियं संघनुद्दिस्स ददंति दानं । सादक्खिणा संघगता पतिहिका, महप्फला लोकविहि वरिणता

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