Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijay Shastra Sangraha Samiti

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Page 554
________________ ( ५०४ ) रजतं जातरूपं, खेत्तं वत्थु प्रजेलकम् । दासीदासं च दुम्मेधा, सादियिस्संति नागते ॥६५७॥ उज्मान सञ्जिनो वाला, सीलेसु असमाहिता । उनहा विचरिस्संति, कलहाभिरता मगा ॥६५८॥ अर्थः-बहुत दोष वाले भिनु आगामी काल में इस लोक में उत्पन्न होंगे जो दुर्बुद्धि भिक्षु बुद्ध द्वारा सुदेशित इस धर्म को लेशित करेंगे, गुण रहित होकर भी होशियार, वाचाल, प्राणपरितापी भिक्षु बलवान् बनेंगे और संघ में व्यवहार चलायेंगे। गुणवान् होते हुए भी संघ में यथास्थित व्यवहार चलाने वाले भिनु बलहीन, लजित और अप्रयोजनीय बनेंगे । चांदी, सोना, क्षेत्र, मकान, बकरे, मेंढ़े और दासी दासों का स्वीकार करके आगामी काल में दुर्बुद्धि भिक्षु उनसे लाभ उठायेंगे। भविष्य में अज्ञानी शील के गुणों में असमाधियुक्त और सच्चे धर्म मार्ग से भ्रष्ट बने हुए भी भिक्षु बड़े ध्यानी का ढोंग कर क्लेश में तत्पर रहते हुए विचरेंगे। अजे गुच्छ विमुहि, सुरगं अरहद्धजं1 : जिगुच्छिरसंति कासावं, ओदातेसु समुच्छिता ॥६६१॥ अर्थः-विमुक्तों द्वारा आहत रक्त और काषाय बुद्धध्वज की जुगुप्सा करेंगे और उजल वस्त्र धारण करने को उत्कण्ठित होंगे।

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