Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijay Shastra Sangraha Samiti

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Page 534
________________ ( ४ ) जो ऐसे दाम की प्रशा करते हैं, वे प्राणियों का वध चाहते है और जो इसका निषेध करते हैं, ये इस दान पर निर्भर रहने वालों की जविका का नाश करते हैं। इस कारण से सच्चे श्रमण ऐसे दानों के सम्बन्ध में पुण्य है, पुण्य नहीं है, यह दोनों प्रकार की भाषा नहीं बोलते। इस प्रकार आरम्भ तथा अन्तराय जनक वचन न बोलने वाले श्रमण आत्मा को कमेरेज से मुक्त कर के निर्माण को प्राप्त है । 1 बौद्ध ग्रन्थों में लेखकों की अतिशयोक्तियां बुद्ध के निर्वाण के सातवें दिन एकत्रित हुए भिक्षुओं में से सुभद्र नामक वृद्ध भिक्षु ने महाकश्यप से कहा- हे आयुष्मन् ! शोक न करी, बिलाप न करो, हम मुक्त हुए हैं, यह तुम को कल्पता हैं यह नहीं कल्पता है इस प्रकार से उस महा श्रमण ने हमें बहुत तंग कर दिया था, अब हम जो चाहेंगे वह करेंगे जो न चाहेंगे वह करेंगे ! क्वचन को स्मरण करते हुए महाकश्यप ने here प्रकार के भिक्षु शास्ता के विना धर्म के खरे स्वरूप को बहुत जल्दी बदल देंगे | यह सोच कर भिक्षु संघ में से महाकश्यप पालि आदि राजगृह पहुँचे और सात महिनों तक रद्द कर बुद्ध के उपदेशों और आगमों को सुना सुना कर व्यवस्थित किये । राजगृह की संगीति के बाद भी धीरे धीरे भिक्षुओं ने अपने चरणों में परिवर्तन करना जारी रक्खा । बुद्ध के इस कथन का यह परिणाम था कि जो उन्होंने अपने अन्तिम जीवन में भिक्षुनों

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