Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijay Shastra Sangraha Samiti

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Page 542
________________ (४६२ ) के सम्बन्ध में हमें कुछ भी नहीं कहना है, परन्तु भद्रा को एक साटी कहा गया है, वह लेखक के अज्ञान का नमूना है। उसने निर्ग्रन्थ श्रमणों को एक साटक देख कर निम्रन्थ श्रमणी को भी एक साटी कह डाला है। इन गाथाओं की रचयित्री भद्रा स्वयं होती तो वह अपने को एक साटी कभी नहीं कहती। जिन्होंने निर्ग्रन्थ श्रमणियों की उपाधि का निरूपण जन सूत्रों में पढा है वे तो यही कहेंगे कि भद्रा का यह बयान विल्कुल झूठा है। जैन श्रमण का यथा जात रूप 'मुखवस्त्रिका, रजाहरण, चोलपट्टक मात्र माना गया है, परन्तु श्रमणियों के लिये यह बात नहीं है । इनके लिये शास्त्रकारों ने अनेक प्रकार के विशेष वस्त्र माने हैं, जिनसे कि इनकी मान मर्यादा और शील सम्पत्ति की रक्षा हो । बुद्ध का अन्तिम भोजन "सूकर मदव" बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं के लिये भोजन में मांस लेने का निषेध नहीं किया था, यह बात पहले कही जा चुकी है। बुद्ध स्वयं मांस का भोजन करते होंगे यह भी सम्भावित हो सकता है, परन्तु उनका अन्तिम भोजन "सूकरमहव" सूअर का मांस था यह बात हम मानने को तैयार नहीं है। बाद मय में मांस आमिष शब्द अनेक स्थलों में आये हैं जिन का अर्थ कहीं प्राण्यंग धातु और कहीं खाद्यपदार्थ होता है, पर तु मद्दब शब्द मांस के अर्थ में प्रयुक्त होने का कोई प्रमाण नहीं मिलता, मात्र सूकर शब्द के साहचर्य से सूकर मन को सूअर का मांस मान लिया गया है, फिर भी इस मान्यता में लेखकों का ऐक मत्य नहीं है।

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