Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijay Shastra Sangraha Samiti

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Page 533
________________ ( ४८३ ) दुह अोवि तेण भासंति, अत्थि वा पत्थि वा पुणो । - आयरयस्स हेचाणं, निव्वाणं पाउणंति ॥२१॥ . (सूत्र कृताङ्ग) अर्थ-प्राणियों का समारम्भ (हिंसा) करके श्रमण के उद्देश्य से तैयार किया हुआ हो, ऐसे आहार पानी को संयमधारी ग्रहण न करे। . पूति कर्म (शुद्ध आहार में मिलाया हुआ दूषित पाहार) सेवन न करे, यह इन्द्रियों को वश में रखने वाले श्रमण का धर्म है, जिस किसी अग्राह्य पदार्थ के ग्रहण की इच्छा हुई हो वह कहीं से भी लेना अकल्पनीय है। ___ ग्रामों में तथा नगरों में अनेक श्रमण भक्तों के कुटुम्ब होते है, अगर वे श्रमण के लिये आहार पानी निमित्तक किसी प्रकार का हिंसा समारम्भ करते हों तो श्रमण उस कार्य में अपनी अनुमति न दे न उस प्रकार का आहार पानी प्रहण ही करे। . __कोई यह पूछे कि श्रमणार्थ तैयार किये हुए आहार पानी के दान में पुण्य है ? या नहीं ? इसके उत्तर में पुण्य है यह न कहे, इन दोनों प्रश्नों का स्वीकारात्मक उत्तर देना महाभय जनक है। दान के लिये जो त्रस तथा स्थावर प्राणी मारे जाते हैं, उनकी रक्षा के लिये ऐसे दान से पुण्य होता है यह वचन भी न बोले । जिनके लिये प्रारम्भ करके वह अन्न पान तैयार किया जाता हैं, उनको लाभान्तराम होगा इस कारण से पुण्य लाभ नहीं है ऐसा बचन भी न करें।

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