Book Title: Manav Bhojya Mimansa
Author(s): Kalyanvijay Gani
Publisher: Kalyanvijay Shastra Sangraha Samiti

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Page 539
________________ ( ४८६ ) पटाङ्ग बातें लिख डाली हैं, जिनमें झूठ और अतिशयोक्ति का तो पार ही नहीं मिलता । . इस सम्बन्ध में एक दो उद्धरण देकर इस इस छेडिङ्ग को पूरा करेंगे । बेस्गाथा में जम्बुक थेर की निम्न उद्धत चार गाथाएं पड़ने योग्य हैं पंच पंचास वस्सानि, रजो जल्लमधारथिं । अं तो मासिकं भक्तं केस मस्सु क्लोनगिं ॥२०३॥ एक पादेन महासिं, आसनं परिवज्जाय । सुक्ख गूथानि च खाद, उद्दसंचन सादियिं ॥ २७४॥ एतादिसं करितवान् बहु दुग्गति गामिनं । • झमानो महोपेन, बुद्धं सरणमाममं ॥ २८५॥ सरण गमनं पस्स, पस्स धम्म सुधम्सतं । तिरुसो बिज्जाः अनुपत्ता, कतं बुद्धस्स सासन्नंति ॥ २८६ ॥ ( जम्बुको थेरो पृ० ४७ ) ܐ अर्थ - जम्बुक थेर कहता है पचपन वर्ष तक मैंने अपने शरीर पर रज तथा मैल के स्तर धारण किये, महीने २ भोजन करते हुए शिर तथा मुख के वालों का लुचन किया 1 एक पैर पर खड़ा रह कर तप किया, आसन को छोड उकुरु आसन से ध्यान किया सूखी विष्ठा खाई फिर भी ' उद्देश सिद्ध नहीं हुआ ।

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