Book Title: Mai Kaun Hun Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 7
________________ मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? दादाश्री : सहज भाव से बोले तो भी अहंकार क्या चला जाता है ? 'मेरा नाम चन्दूलाल है' ऐसा सहज बोलने पर भी वह अहंकार ही है। क्योंकि आप 'जो हैं' यह जानते नहीं हैं और 'जो नहीं हैं' उसका आरोपण करते हैं, वह सब अहंकार ही है न ! प्रश्नकर्ता : वास्तव में तो 'मैं आत्मा ही हूँ' न ? दादाश्री : अभी आप आत्मा हुए नहीं है न ? चन्दूलाल ही हैं न? 'मैं चन्दूलाल हूँ' यह आरोपित भाव है। आपको 'मैं चन्दूलाल ही हूँ', ऐसी बिलीफ़ (मान्यता) घर कर गई है, यह रौंग बिलीफ़ है। (२) बिलीफ़ - रौंग, राइट ! कितनी सारी रौंग बिलीफ़ ! 'मैं चन्दूलाल हूँ' यह मान्यता, यह बिलीफ़ तो आपकी, रात को नींद में भी नहीं हटती है न! फिर लोग हमारी शादी करवा के हमसे कहेंगे कि ,'तू तो इस स्त्री का पति है।' इसलिए हमने फिर स्वामित्व मान लिया। फिर 'मैं इसका पति हूँ, पति हूँ' करते रहें। कोई सदा के लिए पति होता है क्या? डाइवोर्स होने के बाद दूसरे दिन उसका पति रहेगा क्या ? अर्थात ये सारी रौंग बिलीफ़ बैठ गई हैं। 'मैं चन्दूलाल हूँ' यह रौंग बिलीफ़ है। फिर 'इस स्त्री का पति हूँ' यह दूसरी रौंग बिलीफ़। 'मैं वैष्णव हूँ' यह तीसरी ग बिलीफ़। 'मैं वकील हूँ' यह चौथी गैंग बिलीफ़। 'मैं इस लड़के का फादर हूँ' यह पाँचवी रौंग बिलीफ़। इसका मामा हूँ', यह छट्ठी रौंग बिलीफ़। 'मैं गोरा हूँ' यह सातवीं रौंग बिलीफ़। 'मैं पैंतालीस साल का हूँ', यह आठवीं रौंग बिलीफ़। 'मैं इसका भागी (हिस्सेदार) हूँ' यह भी रौंग बिलीफ़। 'मैं इन्कमटैक्स पेयर हूँ' एसा आप कहें तो वह भी रौंग बिलीफ़। ऐसी कितनी गैंग बिलीफ़ बैठ गई होंगी? ___ मैं' का स्थान परिवर्तन ! 'मैं चन्दूलाल हूँ' यह अहंकार है। क्योंकि जहाँ 'मैं' नहीं, वहाँ 'मैं' का आरोपण किया, उसका नाम अहंकार। प्रश्नकर्ता : 'मैं चन्दूलाल हूँ' कहें, उसमें अहंकार कहाँ आया ? 'मैं ऐसा हूँ, मैं वैसा हूँ' ऐसा करे वह अलग बात है, पर सहज रूप से कहें, उसमें अहंकार कहाँ आया ? 'आप चन्दलाल हैं' वह डामेटिक वस्तु है। अर्थात 'मैं चन्दूलाल हूँ' ऐसा बोलने में हर्ज नहीं पर 'मैं चन्दूलाल हूँ' यह बिलीफ़ नहीं होनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : हाँ, वर्ना 'मैं' पद आ गया। दादाश्री : 'मैं' 'मैं' की जगह पर बैठे तो अहंकार नहीं है। पर 'मैं' मूल जगह पर नहीं है, आरोपित जगह पर है इसलिए अहंकार । आरोपित जगह से 'मैं' हट जाये और मूल जगह पर बैठ जाये तो अहंकार गया समझो। अर्थात 'मैं' निकालना नहीं है, 'मैं' को उसके एक्जैक्ट प्लेस (यथार्थ स्थान) पर रखना है। _ 'खुद' खुद से ही अनजान ! यह तो अनंत जन्मों से, खुद, 'खुद' से गुप्त (अनजान) रहने का प्रयत्न है। खुद, 'खुद' से गुप्त रहे और पराया सब कुछ जाने, यह अजूबा ही है न! खुद, खुद से कितने समय तक गुप्त रहोगे? कब तक रहोगे? 'खद कौन है' इस पहचान के लिए ही यह जन्म है। मनुष्य जन्म इसलिए ही है कि 'खुद कौन हैं' उसकी खोज कर लें। नहीं तो, तब तक भटकते रहेंगे। 'मैं कौन हैं' यह जानना पड़ेगा न? आप खुद कौन हैं' यह जानना होगा कि नहीं जानना होगा? (३) 'I' और 'My' को अलग करने का प्रयोग ! सेपरेट, 'I' एन्ड 'My' ! आपसे कहा जाये कि, Separate 'I' and 'My' with Separator, तो आप 'I' और 'My' को सेपरेट कर सकेंगे क्या? 'I' एन्ड 'My' कोPage Navigation
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