Book Title: Mai Kaun Hun
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 10
________________ मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? (५) जगत में कर्ता कौन ? जगत कर्ता की वास्तविकता ! फैक्ट वस्तु नहीं जानने से ही यह सब उलझा हुआ है। अब आपको, 'जो जाना हुआ है' वह जानना है, या 'जो नहीं जाना हुआ है' वह जानना है? आपसे क्या कहते हैं कि हम आपको सब कर देंगे। इसलिए आप चिंता मत करना। यह तो पहले समझ लें कि वास्तव में 'हम' क्या हैं और क्या जानने योग्य है ? सही बात क्या है ? करेक्टनेस क्या है ? दुनिया क्या है? यह सब क्या है ? परमात्मा क्या है ? परमात्मा है ? परमात्मा है ही और वह आपके पास ही है। बाहर कहाँ खोजते हैं ? पर कोई हमें यह दरवाजा खोल दे तो दर्शन कर पायें न! यह दरवाज़ा ऐसे बंद हो गया है कि खुद से खुल पाये, ऐसा है ही नहीं। वह तो जो खुद पार हुए हों, ऐसे तरणतारण ज्ञानी पुरुष का ही काम है। खुद की ही भूलें खुद की ऊपरी ! भगवान तो आपका स्वरूप है। आपका कोई ऊपरी है ही नहीं। कोई बाप भी ऊपरी नहीं है। आपको कोई कुछ करने वाला ही नहीं। आप स्वतंत्र ही हैं, केवल अपनी भूलों के कारण आप बँधे हुए हैं। आपका कोई ऊपरी नहीं है और आप में किसी जीव का दखल (हस्तक्षेप) भी नहीं है। इतने सारे जीव हैं, पर किसी जीव का आप में दखल नहीं है। और ये लोग जो कुछ दखल करते हैं, तो वह आपकी भूल की वजह से दखल करते हैं। आपने जो (पूर्व में) दखल की थी, उसका यह फल है। यह मैं खुद देखकर' बताता हूँ। हम इन दो वाक्यों में गारन्टी देते हैं, इससे मनुष्य मुक्त रह सकता है। हम क्या कहते हैं कि, 'आपका ऊपरी दुनिया में कोई नहीं। आपके ऊपरी आपके ब्लंडर्स और आपकी मिस्टेक्स हैं। ये दो नहीं हों तो आप परमात्मा ही हैं।' और 'आप में किसी की जरा भी दखल नहीं है। कोई जीव किसी जीव को किंचित्मात्र दखल कर सके ऐसी स्थिति में ही नहीं है ऐसा यह जगत है।' ये दो वाक्य सब समाधान ला देते हैं। जगत क्या है ? किस तरह बना ? बनानेवाला कौन? हमें इस जगत से क्या लेना-देना? हमारे साथ हमारे संबंधियों का क्या लेनादेना? बिज़नेस किस आधार पर ? मैं कर्ता हूँ या कोई और कर्ता है ? यह सब जानने की ज़रुरत तो है ही न? प्रश्नकर्ता : जी हाँ। दादाश्री : इसलिए इसमें शुरु में आपको क्या जानना है, उसकी बातचीत पहले करें। जगत किसने बनाया होगा, आपको क्या लगता है? किसने बनाया होगा ऐसा उलझन भरा जगत ? आपका क्या मत है ? प्रश्नकर्ता : ईश्वर ने ही बनाया होगा। दादाश्री : तो फिर सारे संसार को चिंता में क्यों रखा है? चिंता से बाहर की अवस्था ही नहीं है। प्रश्रकर्ता : सब लोग चिंता करते ही हैं न ? दादाश्री : हाँ, मगर उसने यह संसार बनाया तो चिंतावाला क्यों बनाया ? उसको पकड़वा दो, सीबीआई वाले को भेजकर। पर भगवान गुनहगार है ही नहीं ! यह तो लोगों ने उसे गुनहगार करार दिया है। वास्तव में तो, गोड इज़ नोट क्रियेटर ऑफ दिस वर्ल्ड एट ऑल। ओन्ली सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है। अर्थात यह तो सारी कुदरती रचना है। उसे गुजराती में मैं 'व्यवस्थित शक्ति' कहता हूँ। यह तो बहुत सूक्ष्म बात है।

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