Book Title: Mai Kaun Hun
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 16
________________ मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? 'स्वभाव' में आने में मेहनत नहीं ! मोक्ष याने अपने स्वभाव में आना और संसार यानी अपने विशेष भाव में जाना। यानी आसान क्या? स्वभाव में रहना ! यानी मोक्ष कठिन नहीं होता। संसार हमेशा ही कठिन रहा है। मोक्ष तो खिचड़ी बनाने से भी आसान है। खिचड़ी बनाने के लिए तो लकड़ी लानी पड़े, दालचावल लाने पड़े, पतीली लानी पड़े, पानी लाना पड़े, तब जाकर खिचड़ी बने। जबकि मोक्ष तो खिचडी से भी आसान है पर मोक्षदाता ज्ञानी मिलने चाहिए। वर्ना मोक्ष कभी नहीं हो सकता। करोड़ों जन्म लेने पर भी नहीं होगा। अनंत जन्म हो ही चुके हैं न ? मेहनत से मोक्षप्राप्ति नहीं ! यह हम कहते हैं न, कि हमारे पास आकर मोक्ष ले जाइए, तब लोग मन में सोचते हैं कि 'ऐसा दिया गया मोक्ष किस काम का, अपनी मेहनत किये बिना ?' तो भैया, मेहनत करके लाना। देखिये, उसकी समझ कितनी अच्छी (!) है?' बाकी मेहनत से कुछ भी मिलनेवाला नहीं है। मेहनत से कभी किसी को मोक्ष मिला नहीं है। प्रश्नकर्ता : मोक्ष दिया या लिया जा सकता है क्या ? दादाश्री : वह लेने-देने का होता ही नहीं है। यह तो नैमित्तिक है। आप मुझसे मिले, यह निमित्त हुआ। निमित्त ज़रूरी है। बाकी, न तो कोई देनेवाला है और न ही कोई लेनेवाला है। देनेवाला कौन कहलाता है ? कोई अपनी वस्तु देता हो, तो उसे देनेवाला कहते हैं। पर मोक्ष तो आपके घर में ही है, हमें तो केवल आपको दिखाना है, रीयलाइज़ करा देना है। यानी लेने देने का होता ही नहीं, हम तो केवल निमित्त हैं। चाहिए। तब मैं कहता हूँ कि, 'भैया, आपको मोक्ष की जरूरत नहीं है लेकिन सुख तो चाहिए कि नहीं? कि दुःख पसंद है ?' तब कहते हैं, 'नहीं, सुख तो चाहता हूँ।' मैंने कहा, 'सुख थोड़ा-बहुत कम होगा तो चलेगा?' तब वह कहे, 'नहीं, सुख तो पूरा ही चाहिए।' तब मैंने कहा, 'तो हम सुख की ही बात करें। मोक्ष की बात जाने दें।' मोक्ष क्या चीज बात कर मामलोसा है, यह लोग समझते ही नहीं। शब्द में बोलें इतना ही है। लोग ऐसा समझते हैं कि मोक्ष नाम की कोई जगह है और वहाँ जाने से हमें मोक्ष का मजा आता है ! पर ऐसा नहीं है यह। मोक्ष, दो स्टेज में ! प्रश्नकर्ता : मोक्ष का अर्थ, हम आम तौर पर 'जन्म-मरण से मुक्ति ', ऐसा करते हैं। दादाश्री : हाँ, यह सही है। पर जो अंतिम मुक्ति है, वह सेकन्डरी स्टेज है। पर पहले स्टेज में, पहला मोक्ष यानी संसारी दुःख का अभाव बर्ते। संसार के दुःख में भी दुःख लगे नहीं, उपाधि में भी समाधि रहे. वह पहला मोक्ष। और फिर यह देह छूटने पर आत्यंतिक मोक्ष है। पर पहला मोक्ष यहाँ होना चाहिए। मेरा मोक्ष हो ही गया है न! संसार में रहने पर भी संसार छुए नहीं, ऐसा मोक्ष हो जाना चाहिए। इस अक्रम विज्ञान से ऐसा हो सकता है। जीते जी ही मुक्ति ! प्रश्रकर्ता : जो मुक्ति या मोक्ष है, वह जीते जी मुक्ति है या मरने के पश्चात् की मुक्ति है ? दादाश्री : मरने के पश्चात् की मुक्ति किस काम की ? मरने के बाद मुक्ति होगी, ऐसा कहकर लोगों को फँसाते हैं। अरे, मुझे यहीं कुछ दिखा न! स्वाद तो चखा कुछ, कुछ प्रमाण तो बता। वहाँ मोक्ष होगा, उसका क्या ठिकाना ? ऐसा उधारिया मोक्ष हमें क्या करना ? उधार में बरक़त नहीं होती। इसलिए कैश (नक़द) ही अच्छा। हमारी यहाँ जीते मोक्ष यानी सनातन सुख ! प्रश्रकर्ता : मोक्ष पाकर क्या करना ? दादाश्री : कुछ लोग मुझे मिलने पर कहते हैं कि मुझे मोक्ष नहीं

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