Book Title: Mai Kaun Hun
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 25
________________ मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? 'आज्ञा' का पालन। 'आज्ञा' ही धर्म और 'आज्ञा' ही तप। और हमारी आज्ञा संसार (व्यवहार) में जरा सी भी बाधक नहीं होती है। संसार में रहते हुए भी संसार का असर नहीं हो, ऐसा यह अक्रम विज्ञान है। बाकी यदि एक भव वाला (एकावतारी) होना हो तो हमारे कहे अनुसार आज्ञा में चलिए। तो यह विज्ञान एकावतारी है। यह विज्ञान है फिर भी यहाँ से (भरत क्षेत्र से) सीधे मोक्ष में जा पायें ऐसा (संभव) नहीं है। मोक्षमार्ग में आज्ञा ही धर्म.... जिसे मोक्ष में जाना हो, उसे क्रियाओं की जरूरत नहीं है। जिसे देवगति में जाना हो, भौतिक सुखों की कामना हो, उसे क्रियाओं की जरूरत है। मोक्ष में जाना हो, उसे तो ज्ञान और ज्ञानी की आज्ञा, इन दो की ही जरूरत है। मोक्ष मार्ग में तप-त्याग कुछ भी करना होता नहीं है। केवल ज्ञानी पुरुष मिले तो ज्ञानी की आज्ञा ही धर्म और आज्ञा ही तप और यही ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप है, जिसका प्रत्यक्ष फल मोक्ष है। _ 'ज्ञानी' के पास रहना ! ज्ञानी के ऊपर कभी प्रेमभाव नहीं आया। ज्ञानी पर प्रेमभाव आये तो, उसी से सारा हल निकल आये। हरेक जन्म में बीबी-बच्चों के अलावा और कुछ होता ही नहीं न! भगवान ने कहा कि ज्ञानी पुरुष के पास से सम्यक्त्व प्राप्त होने के पश्चात ज्ञानी पुरुष के पीछे लगे रहना। प्रश्नकर्ता : किस अर्थ में पीछे लगे रहना ? दादाश्री : पीछे लगे रहना यानी यह ज्ञान मिलने के पश्चात् और कोई आराधन नहीं होता। पर, यह तो हम जानते हैं कि यह अक्रम है। ये लोग अनगिनत 'फाइलें' लेकर आये हैं। इसलिए आपको फाइलों की खातिर मुक्त रखा है पर उसका अर्थ ऐसा नहीं है कि कार्य पूरा हो गया। आज-कल फाइलें बहुत हैं, इसलिए आपको मेरे यहाँ रखू तो आपकी 'फाइलें' बुलाने आयेंगी। इसलिए छूट दी है कि घर जाकर फाइलों का समभाव से निकाल (निपटारा) कीजिए। नहीं तो फिर ज्ञानी के पास ही पड़े रहना चाहिए। बाकी, हमारे से यदि पूर्ण रूप से लाभ नहीं लिया जाता, तो यह निरंतर रात-दिन खटकना चाहिए। भले ही फाइलें हैं और ज्ञानी पुरुष ने कहा है न, आज्ञा दी है न कि फाइलों का समभाव से निकाल करना, वह आज्ञा ही धर्म है न? वह तो हमारा धर्म है। पर यह खटकते रहना तो चाहिए ही कि ऐसी फाइलें कम हों, ताकि मैं लाभ उठा पाऊँ। उसको तो महाविदेह क्षेत्र सामने आयेगा ! जिसे शुद्धात्मा का लक्ष्य बैठ गया हो, वह यहाँ पर भरतक्षेत्र में रह सकता ही नहीं। जिसे आत्मा का लक्ष्य बैठ गया हो, वह महाविदेह क्षेत्र में ही पहुँच जाये, ऐसा नियम है। यहाँ इस दुषमकाल में रह ही नहीं पाये। यह शुद्धात्मा का लक्ष्य बैठा, वह महाविदेह क्षेत्र में एक जन्म अथवा दो जन्म करके, तीर्थंकर के दर्शन करके मोक्ष में चला जाये, ऐसा आसान, सरल मार्ग है यह ! हमारी आज्ञा में रहना। आज्ञा ही धर्म और आज्ञा ही तप ! समभाव से निकाल(निपटारा) करना होगा। वे जो आज्ञाएँ बतायी हैं, उनमें जितना रह पायें उतना रहें, पूर्ण रूप से रहें तो भगवान महावीर की दशा में रह सकते हैं। आप 'रीयल' और 'रिलेटिव' देखते जायें, तब आपका चित्त दूसरी जगह नहीं भटकेगा, पर उस समय मन में से कुछ निकले तो आप उलझ जाते हैं। (१४) पाँच आज्ञा की महत्ता ! 'ज्ञान' के पश्चात् कौन सी साधना ? प्रश्नकर्ता : इस ज्ञान के पश्चात् अब किस प्रकार की साधना करनी चाहिए?

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