Book Title: Mai Kaun Hun
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 26
________________ मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? दादाश्री: साधना तो, यह पाँच आज्ञा का पालन करते हैं न, वही ! अब और कोई साधना नहीं होती। दूसरी साधना बंधनकर्ता है। यह पाँच आज्ञाएँ छुड़ानेवाली हैं। समाधि बरतायें, ऐसी आज्ञाएँ ! प्रश्नकर्ता : ये जो पाँच आज्ञाएँ हैं, इसके अलावा और कुछ है ? दादाश्री : पाँच आज्ञा आपके लिए एक बाड़ हैं, ताकि आपका माल भीतर कोई चुरा न ले। यह बाड़ रखने से आपके भीतर, हमने जो दिया है वह एक्जैक्ट, वहीं का वहीं रहेगा, और बाड़ कमजोर हुई तो कोई अंदर घुसकर बिगाड़ देगा। तब फिर मुझे रिपेयर करने आना पड़ेगा। इसलिए इन पाँच आज्ञाओं में रहें तब तक निरंतर समाधि की हम गारन्टी देते हैं। मैं पाँच वाक्य आपको प्रोटेक्शन के लिए देता हूँ। यह ज्ञान तो मैंने आपको दिया और 'भेदज्ञान' से 'अलग' भी किया। पर अब वह 'अलग' ही रहे, इसलिए प्रोटेक्शन देता हूँ कि जिससे यह काल जो कलियुग है, इस कलियुग वाले कहीं उसे लूट न लें। 'बोधबीज' उगने पर पानी आदि सब छिड़कना होगा न ? बाड़ करनी होगी कि नहीं करनी होगी? पालन करना ही है। सवेरे से ही निश्चय करना कि 'पाँच आज्ञा में ही रहना है, पालन करना ही है।' निश्चय किया, तब से हमारी आज्ञा में आ गया, मुझे इतना ही चाहिए। पालन नहीं होता, उसके कॉजेज (कारण) मुझे मालूम हैं। हमें पालन करना है, ऐसा निश्चय ही करना है। अपने ज्ञान से तो मोक्ष होनेवाला ही है। यदि कोई आज्ञा में रहेगा तो उसका मोक्ष होगा, उसमें दो राय नहीं है। फिर कोई नहीं पालता हो, पर उसने ज्ञान लिया है यदि, तो वह उगे बिना रहनेवाला नहीं है। इसलिए लोग मुझसे कहते हैं, 'ज्ञान पाये हुए कुछ लोग आज्ञा का पालन नहीं करते हैं, उसका क्या ?' मैंने कहा, 'यह तुझे देखने की जरूरत नहीं है, यह मुझे देखने की जरूरत है। ज्ञान मेरे पास से ले गये हैं न। तेरा घाटा तो नहीं हुआ न ?' क्योंकि पाप भस्मीभूत हुए बिना रहते नहीं। हमारे इन पाँच वाक्यों में रहेंगे तो पहुँच पायेंगे। हम निरंतर पाँच वाक्यों में ही रहते हैं और हम जिसमें रहते हैं वही 'दशा' आपको दी है। आज्ञा में रहने पर काम होगा। खुद की समझ से लाख जन्म सिर फोड़ेंगे तो भी कुछ होनेवाला नहीं है। पर यह तो आज्ञा भी खुद की अकल से पालें। फिर, आज्ञा भी समझेंगे अपनी समझ से ही न! इसलिए वहाँ पर भी थोड़ा थोड़ा लीकेज होता रहता है। फिर भी आज्ञा पालन के पीछे उसका अपना भाव तो ऐसा ही है कि 'आज्ञा पालन करना ही है। इसलिए जागृति चाहिए। आज्ञा पालन करना भूल जायें तो प्रतिक्रमण करना। मनुष्य हैं, भूल तो जायेंगे। पर भूल जाने पर प्रतिक्रमण करना कि 'हे दादाजी, ये दो घंटे भूल गया, आपकी आज्ञा भल गया। पर मुझे तो आज्ञा पालन करना ही है। मुझे क्षमा करें।' तो पिछला सारा माफ। सौ में से सौ मार्क पूरे। इसलिए जिम्मेदारी नहीं रही। आज्ञा में आ जायें तो उसे सारी दुनिया नहीं छू सकती। हमारी आज्ञा का पालन करने पर आपको कुछ स्पर्शेगा नहीं। तो आज्ञा देनेवाले को चिपकेगा? नहीं, क्योंकि परहेतु के लिए है, इसलिए उसे स्पर्शे नहीं और डिज़ोल्व हो जाये। दृढ़ निश्चय ही कराये पालन, आज्ञा का ! दादाजी की आज्ञा का पालन करना है, यही सबसे बड़ी चीज है। हमारी आज्ञा का पालन करने का निश्चय करना चाहिए। आपको यह नहीं देखना है कि आज्ञा का पालन होता है या नहीं। आज्ञा का पालन जितना हो पाये उतना सही, पर हमें निश्चय करना है कि आज्ञा का पालन करना है। प्रश्नकर्ता : कम-ज्यादा पालन हो, उसमें कोई हरकत नहीं न ? दादाश्री : 'हरकत नहीं', ऐसा नहीं। हम निश्चय करें कि आज्ञा का

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