Book Title: Mai Kaun Hun
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 17
________________ मैं कौन हूँ ? जी मुक्ति होनी चाहिए, जैसे जनक राजा की मुक्ति आपने नहीं सुनी ? प्रश्नकर्ता सुनी है। (८) अक्रम मार्ग क्या है ? है ? २३ अक्रम ज्ञान से अनोखी सिद्धि ! प्रश्नकर्ता : पर इस संसार में रहते हुए आत्मज्ञान ऐसे मिल सकता दादाश्री : हाँ, ऐसा रास्ता है। संसार में रहकर इतना ही नहीं, पर वाइफ के साथ रहते हुए भी आत्मज्ञान मिल सके, ऐसा है। केवल संसार में रहना ही नहीं, पर बेटे-बेटियों को ब्याहकर, सभी कार्य करते हुए आत्मज्ञान हो सकता है। मैं संसार में रहकर ही आपको यह करवा देता हूँ। संसार में, अर्थात सिनेमा देखने जाना आदि आपको सभी छूट देता हूँ। बेटे-बेटियों को ब्याहना और अच्छे कपड़े पहनकर ब्याहना । फिर इससे ज्यादा और क्या गारन्टी चाहते हैं ? प्रश्नकर्ता : इतनी सारी छूट मिले, तब तो ज़रूर आत्मा में रह सकते हैं। दादाश्री : सारी छूट ! यह अपवाद मार्ग है। आपको कुछ मेहनत नहीं करनी है। आपको आत्मा भी आपके हाथों में दे देंगे, उसके बाद आत्मा की रमणता में रहिए और इस लिफ्ट में बैठे रहिए। आपको और कुछ भी नहीं करना है। फिर आपको कर्म ही नहीं बँधेंगे। एक ही जन्म के कर्म बँधेंगे, वे भी मेरी आज्ञा के पालन के ही हमारी आज्ञा में रहना इसलिए जरूरी है कि लिफ्ट में बैठते समय यदि हाथ इधर-उधर करे तो मुश्किल में पड़ जाये न ! प्रश्नकर्ता : यानी अगला जन्म होगा जरूर ? दादाश्री : पिछला जन्म भी था और अभी अगला जन्म भी है पर यह ज्ञान ऐसा है कि अब एक-दो जन्म ही बाकी रहते हैं। पहले अज्ञान मैं कौन हूँ ? से मुक्ति हो जाती है। फिर एक-दो जन्म में अंतिम मुक्ति मिल जायेगी । एक जन्म तो शेष रहे, यह काल ऐसा है। २४ आप एक दिन मेरे पास आना। हम एक दिन तय करेंगे तब आपको आना है। उस दिन सभी की रस्सी पीछे से काट देते हैं (स्वरूप के अज्ञान रूपी रस्सी का बंधन दूर करते है)। रोज़ रोज़ नहीं काटना। रोज़ तो सभी बातें सत्संग की करते हैं, लेकिन एक दिन तय करें उस दिन ब्लेड से ऐसे रस्सी काट देते हैं (ज्ञानविधि से स्वरूपज्ञान प्राप्ति करवाते हैं) और कुछ नहीं। फिर तुरंत ही आप समझ जायेंगे कि यह सब खुल गया। यह अनुभव होने पर तुरंत ही कहे कि मुक्त हो गया । अर्थात मुक्त हुआ, ऐसा भान होना चाहिए। मुक्त होना, यह कोई गप्प नहीं है। यानी हम आपको मुक्त करा देते हैं। जिस दिन यह 'ज्ञान' देते हैं उस दिन क्या होता है ? ज्ञानाग्नि से उसके जो कर्म हैं, वे भस्मीभूत हो जाते हैं। दो प्रकार के कर्म भस्मीभूत हो जाते हैं और एक प्रकार के कर्म बाकी रहते हैं। जो कर्म भापरूप हैं, उनका नाश हो जाता है। और जो कर्म पानी स्वरूप हैं, उनका भी नाश हो जाता है पर जो कर्म बर्फ स्वरूप हैं, उनका नाश नहीं होता है। बर्फ स्वरूप जो कर्म है, उन्हें भोगना ही पड़ता है। क्योंकि वे जमे हुए हैं। जो कर्म फल देने के लिए तैयार हो गया है, वह फिर छोड़ता नहीं । पर पानी और भाप स्वरूप जो कर्म हैं, उन्हें ज्ञानाग्नि उड़ा देती है। इसलिए ज्ञान पाते ही लोग एकदम हल्के हो जाते हैं, उनकी जागृति एकदम बढ़ जाती है। क्योंकि जब तक कर्म भस्मीभूत नहीं होते तब तक जागृति बढ़ती ही नहीं है मनुष्य की। जो बर्फ स्वरूप कर्म हैं वे तो हमें भोगने ही रहें। और वे भी सरल रीति से कैसे भोगें, उसके सब रास्ते हमने बताये हैं कि, “भाई, यह 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो बोलना', त्रिमंत्र बोलना, नव कलमें बोलना। " हम ज्ञान देते हैं, उससे कर्म भस्मीभूत हो जाते हैं और उस समय कई आवरण टूट जाते हैं। तब भगवान की कृपा होने के साथ ही वह खुद जागृत हो जाता है। वह जागृति फिर जाती नहीं, जागने के पश्चात वह

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