Book Title: Mai Kaun Hun
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 12
________________ मैं कौन हूँ? मैं कौन हूँ? निर्मित) वस्तुएँ हैं, मनुष्यों की बनाई हुई वस्तुएँ हैं, उनमें भगवान नहीं हैं। जो कुदरती रचना है, उसमें भगवान है। मनोनुकूल का सिद्धांत ! कितने सारे संयोग इकट्ठा होने पर कोई कार्य होता है, यानी यह सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है। उसमें ईगोइज्म करके. 'मैंने किया', कहकर हाँकते रहते हैं। पर अच्छा होने पर 'मैंने किया' और बिगडने पर 'मेरे संयोग अभी ठीक नहीं हैं' ऐसा हमारे लोग कहते हैं न? संयोगों को मानते हैं न, हमारे लोग ? प्रश्रकर्ता : हाँ। सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स ! इसलिए बातचीत कीजिए, जो कुछ भी बातचीत करनी हो वह सब कीजिए। ऐसी बातचीत कीजिए कि जिससे आपको सब खुलासा हो जाये। प्रश्नकर्ता : यह 'सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स' समझ में नहीं आया। दादाश्री: यह सब सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स (वैज्ञानिक सांयोगिक प्रमाणों) के आधार पर है। संसार में एक भी परमाणु चेन्ज हो सके ऐसा नहीं है। अभी आप भोजन करने बैठे, तो आपको मालूम नहीं कि मैं क्या खानेवाला हूँ ? बनानेवाला नहीं जानता कि कल खाने में क्या पकाना है ? यह कैसे हो जाता है, यही अजूबा है। आपसे कितना खाया जायेगा और कितना नहीं, वह सब परमाणु मात्र, निश्चित है। आप आज मुझसे मिले न, वह किस आधार पर मिल पाये? ओन्ली सायन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है। अति अति गुह्य कारण है। उस कारण को खोज निकालें। दादाश्री : कमाई होती है तो उसका गर्वरस खुद चखता है और जब घाटा होता है तब कुछ बहाना बनाता है। हम पछे, 'सेठजी, ऐसे क्यों हो गये हैं अभी ?' तब वे कहेंगे, 'भगवान रूठे हैं।' प्रश्नकर्ता : मनोनुकूल का सिद्धांत हो गया। दादाश्री : हाँ, मनोनुकूल, पर ऐसा आरोप उसके ऊपर (भगवान पर) नहीं लगाना चाहिए। वकील पर आरोप लगायें या और किसी पर आरोप लगायें वह तो ठीक है, पर भगवान पर आरोप लगा सकते हैं क्या ? वकील तो दावा दायर करके हिसाब माँगे पर इसका दावा कौन दायर करेगा? इसका फल तो अगले जन्म में (संसार की) भयंकर बेड़ी मिले। भगवान के ऊपर आरोप लगा सकते हैं क्या ? प्रश्नकर्ता : नहीं लगा सकते। दादाश्री : या फिर कहेगा, 'स्टार्स फेवरेबल (ग्रह अनुकूल) नहीं हैं।' या फिर 'हिस्सेदार मुआ टेढ़ा है' ऐसा कहे। नहीं तो 'लड़के की बहू मनहूस है' ऐसा कहें। पर अपने सिर नहीं आने देता! अपने सिर कभी गुनहगारी नहीं लेता। इसके बारे में मेरी एक फोरिनवाले से बातचीत हुई थी। उसने पूछा कि 'आपके इन्डियन लोग गुनाह अपने सिर क्यों नहीं आने देते ?' मैंने कहा, 'यही इन्डियन पज़ल है। इन्डिया का सबसे बड़ा पज़ल (समस्या) हो तो, यही है।' प्रश्नकर्ता : पर वह खोजें किस तरह ? दादाश्री : जैसे अभी आप यहाँ आये, उसमें आपके बस में कुछ है नहीं। वह तो आपकी मान्यता है, ईगोइज़म करते हो कि. 'मैं आया और गया।' यह जो आप कहते हैं, 'मैं आया' और मैं कहूँ कि, 'कल क्यों नहीं आये थे ?' तब 'ऐसे' पैर दिखाये, इससे क्या समझा जाये? प्रश्नकर्ता : पैर दु:खते थे। दादाश्री : हाँ, पैर दुःखते थे। पैर का बहाना करे तो नहीं समझ जायें कि आनेवाले आप, कि पैर आनेवाले ? प्रश्रकर्ता : पर मैं ही आया कहलाये न ?

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