Book Title: Mahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Author(s): Udaybhanu Sinh
Publisher: Lakhnou Vishva Vidyalaya

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Page 216
________________ २४६ जिम मुबह अागरा व अवध के मदरमा की प्रिरेटरी गवनेमन्ट रेजोल्यूशन न........ ....ता० १६ मई १६०३ ई. के मुश्राफ़िक, हिन्दुस्तानिया की रोज़मर्गः की बोली में पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी ने बनाया । देवनागरी लिपि में लिखित इस उद पुस्तक में 'अक्षर', 'ईश्वर', 'भोजपत्र', 'विद्या' 'श्रम' और 'समुद्र' को छोडकर संस्कृत हिन्दी शब्दों का बहिष्कार किया गया है । ये भी वाव्य होकर लिखे गए हैं क्योकि उदाहरणार्थ 'क्ष', 'त्र', 'द्य', 'श्र' और 'द्र' का प्रयोग करना अनिवार्य था । पुस्तक भर में 'सदा', 'दुःस्व', 'टंड', 'श्राकाश', और 'पाठशाला या विद्यालय', 'बार', 'सुन्दर', 'बहुत', 'भारतवर्ष', 'बलवान', 'हानि', 'लाज', 'क्रोध'. 'दया', 'मृर्व 'मधुमकावी', 'बिना', 'विद्या', 'जीवन भर', 'मगय', 'शरीर' 'मामा जा नमस्ते' आदि के स्थान पर क्रमशः 'हमंशा', 'तकलीफ', 'सजा', 'श्राममान', 'तरफ्', 'मदरमा', 'दफा', 'खूबसूरत', 'जियादा', 'हिन्दुस्तान', 'ताकतवर', 'नुकसान', 'शरम', गुस्सा', 'रहम', 'ववक्रम', या 'कम अवल', 'शहद की सबबी', 'बगेर', 'इल्म', 'उमर मर', 'वक्त', 'बदन', 'माम साहब मलाम' श्रादि का ही प्रयोग हुश्रा है । इस पुस्तक में अरबी-फारसीपन के लिए द्विवेदी जी उत्तरदायी नहीं हैं। उनकी मूल पुस्तक की भापा हिन्दी थी, शिक्षा-विभाग के अधिकारियों ने उसका हिन्दीत्व नष्ट कर दिया है । यह बात मन्वपृष्ठ पर अन्य पुरुष के प्रयोग से भी मिद्ध हो जाती है । सम्भवतः इसी कारण द्विवेदी जी ने शिक्षा-संस्थात्री के लिए फिर कोई एस्तक नहीं लिम्बी : ____ भाषा की रीति के विषय में उनका निश्चित मत था कि हिन्दः एक जीवित भाग है। उसे किमी परिमित मीमा के भीतर श्राबद्ध करने में उसके उपचय को हानि है । दूसरों भाषाओं के शब्दो और भावों को ग्रहण कर लेने की शक्ति रखना ही सजीवता का लक्षण है। सम्पर्क के प्रभाव में हिन्दी ने अरबी, फारमी और तुकी तक के शब्द ग्रहण कर लिए हैं और अब अँगरेजी तक के शब्द ग्रहण करती जा रही है । इममें हिन्दी की वृद्धि है, हास नहीं । विदेशी भाव, शब्द और मुहावरे ग्रहण करने में केवल यह देखना चाहिए कि हिन्दी उन्हें पचा मकती है या नहीं, उनका प्रयोग ग्बट कता तो नहीं. वे उमकी प्रकृति के प्रतिकूल तो नहीं, हिन्दा हिन्दी ही बनी है या नहीं। मकान, मालिक, नोट, नम्बर आदि शब्द हिन्दी में खप गए है, विदेशी नहीं रहे । हा, ग्बटकने वाले मावा या मुद्दारी का प्रयोग करना ठीक नहीं । दृष्टिकोण (Angle of vision) लागू होना (to be applied) नगी प्रकृति (naked nature) यादि के प्रयोग में हिन्दी की विशेषता को पक्का पहुँचता है । १ साहित्य सम्मेलन के कानपुर अधिवेशन में दिए गए- भाषण (५० ४६ - ५६ ) के प्राधार पर

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