Book Title: Mahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Author(s): Udaybhanu Sinh
Publisher: Lakhnou Vishva Vidyalaya

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Page 258
________________ २७ ] चरित्र प्रवान कहानी म भार प्रपन स्टानी का मुख्य विशपता यह है कि भाब प्रधान कहानी लेग्वक कहानीकार के समान ही और कहीं कहीं उसमे बढकर कवि भी है। यही कारण है कि वह भावुकतावश घटना. चरित्र या रूप की अपेक्षा पात्रों के भावो का ही विशेष भावन और अभिव्यंजन करता है । गद्य के माध्यम द्वारा घटना, चरित्र यादि घर अाधारित जीवन के किमी अंग का शब्द चित्र होने के कारण ही ये रचनाएँ कहानी कहलाती हैं, कविता नहीं। टन भाव-प्रधान कहानियों में प्रेम, त्याग, वीरता, कृपणता ग्रादि भावो का काव्यात्मकी उद्घाटन किया गया है, यथा 'कानों में कंगना' ( राधिकारमणप्रसाद सिंह ), 'उन्माद ( चंडीप्रमाद हृदयेश ), 'अाकाश दीप' ( जयशकर प्रसाद ) आदि । चौथा वग चित्र-प्रधान कहानियों का है । भाव-प्रधान और चित्र-प्रधान दोनो ही प्रकार की कहानिया काव्यात्मक हैं। उनमे प्रमुख अन्तर यह है कि भाव प्रधान कहानी में कहानीकार का उद्देश पात्रों के भावो का ग्रहण करना रहता है किन्तु चित्र प्रधान कहानी में वह पात्रा के बातावरण का बिम्ब-ग्रहण कराने का प्रयास करता है । 'अाकाश दीप' मीग्व कहानियों में तो भाव और विम्ब दोनो ही का सुन्दर चित्रण हुआ है। अंकित चित्रों की काल्पनिकता या यथार्थता के अनुसार चित्र-प्रधान कहानियों दो प्रकार की हैं। एक तो बे हैं जिनका प्रधान सौन्दर्य उनके कवित्वपूर्ण कल्पनामंडित और अतिर जित वातावरण के चित्रों में निहित है, यथा प्रतिध्वनि' (प्रमाद ), 'योगिनी' (हृदयेश ), 'मिलनमुहूर्त' (गोविन्दबल्लभ पंत) 'कामनातरु' (प्रेमचन्द ) आदि। दूसरा प्रकार उन कहानियों का है जिनके चित्र वास्तविक जगत और डेनिक जीवन में लिए गए हैं : वेचन शर्मा उग्र और चतुरमेन शास्त्री इस प्रकार के प्रतिनिधि लेन्त्रक हैं | द्विवेदी-युग में जब कि उपन्यास-कला-शैली का विकाम हो रहा था तभी उस युग के कहानी-लेग्वक अमर कहानिया की रचना कर रहे थे । 'कानो मे कंगना', 'पंचपरमेश्वर', 'उसने कहा था', 'मुक्ति मार्ग', 'ग्रान्मागम'. 'मिलनमुहूर्त', 'श्राकाशदीप', 'खूनी', 'ताई', 'चित्रकर', 'बलिदान' श्रादि सुन्दर कहानियों उमी युग में लिखी गई । ज्ञान-विज्ञान की उन्नति, कहानी कला के विकास और द्विवेदी जी की आदर्शवादिता, मुधार तथा प्रोत्साहन से प्रभावित होने के कारण द्विवेदी-युग के कहानीकारो ने तिलस्मी, जासूसी, ऐयारी और भूत प्रेत के जगत से ऊपर उठकर मानव-मानस तथा समाज और जीवन तक आने मे अद्भुत प्रगति दिखाई । मन्दरतम हिन्दो कहानियों के किसी भी मकलन में द्विवेदी-युग की कहानियों का स्थान अपेक्षाकृत बहुत ऊँचा है ।

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