Book Title: Mahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Author(s): Udaybhanu Sinh
Publisher: Lakhnou Vishva Vidyalaya

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Page 268
________________ आलोचना भारतन्दु-गुग ने कात्र, नाटककार, कथाकार , निवन्धकार श्रादि क पद म जीवन का मर्वतोमुग्बी आलोचना की और कारथितप्रतिभा ही उन समीक्षाओं का कारण रही। किन्तु उम युग का कोई भी साहित्यकार भावयितप्रतिभा के श्रावार पर साहिन्य का गण्यमान्य ममालोचक नहीं हुशा । ममीक्षा-सिद्धात के क्षेत्र में भारतेन्दु ने 'नाटक' नाम की पुस्तिका तो लिखी भी परन्तु रचनाओ की अालोचना मे कुछ भी नहीं प्रस्तुत किया। १८६७ ई. की नागरी प्रचारिंगी पत्रिका [ पृष्ट १५ मे ४७ ] में गंगाप्रसाद अग्निहोत्री का 'समालोचना' निवन्ध प्रकाशित हुश्रा । उसमे समालोचना के गुणो-मूल ग्रन्थ का ज्ञान, मत्यप्रीति, शान्त स्वभाव और सहृदयता--का परिचयात्मक शैली में वर्णन किया गया, अालोचना के तत्वों का ठोम और सूक्ष्म विवेचन नहीं । उनी पत्रिका पृष्ठ ८८ से ११६ ] मे जगन्नाथदास रत्नाकर ने 'ममालोचनादर्श लिखा । वह लेखक के स्वतंत्र चिन्तन का फल न होकर अँग्रेजी माहित्यकार पोप के 'एसे अनि कृटिसिज्म' का अनुवाद था। उसी पत्रिका के अन्तिम ५३ पृष्ठो में अम्बिकादत्त व्यास का गद्यकाव्य-मीमासा' लेग्य छपा ? उम लेग्न में अालोचक ने अाधुनिक गद्यकाव्य की मौलिक समीक्षा न करके संस्कृत प्राचार्यो', विशेष कर साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ, के अनुसार संस्कृत की कथा और श्राख्यायिका का सागोपाग वर्णन किया है । १६०१ ई० की 'सरस्वती' में द्विवेदी जी ने 'नायिकाभेद' पृष्ठ १६५ ] और कविकर्तव्य' [ पृष्ठ २३२ ] लेख लिखे । इन लेखों में उन्होंने कवियों को युग-परिवर्तन करने की चेतावनी दी । नायिकाभेद-विषयक पुस्तकां के लेखन और प्रचार को रोकने के लिए उन्होंने प्राचार्य के भाहित्यकार स्वर में कहा इन पुस्तको के बिना माहिल्य को कोई हानि न पहुंचेगी, उल्टा लाभ होगा। इनके न होने ही में समाज का कल्याणा है । इनके न होने ही से नश्वयस्क युवाजनो का कल्याण है । इनके न होने ही मे इनके बनाने और बेचनेवालो का कल्याण है । १० । उन्होंने संहारात्मक मिद्धान्तो का कवन्न उपदेश ही नहीं दिया, कवियों के समक्ष निश्चित रचनात्मक कार्यक्रम भी उपस्थिन किया--- "अाजकल हिन्दी मेकान्ति की अवस्था में है। हिन्दी कवि का कर्तव्य यह है कि वह लोगों की मचि का विचार रख कर अपनी कविता ऐसी सहज और मनोहर रचे कि पटे लिखे लोगा में भी पुगनी कविता के माथ मार नई कविता पाने का

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