Book Title: Mahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Author(s): Udaybhanu Sinh
Publisher: Lakhnou Vishva Vidyalaya

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Page 256
________________ कहानिया की विशेषता यह है। चेतन वस्नु म चैतन्य का अरोप करके उसी की दृष्टि से सारी कहानो कही गई है। पात्र वातावरण प्रादि अपरिचित हैं, हम जिन रूपो में उन्हे नित्यप्रति देग्वत हे उन रूपों में उनका चित्रण नहीं किया गया है । द्विवेदी-युग की कहानियों की तीसरी व्यापक शैली नाटकीय है। बम्तृतः सभी मुन्दर कहानियों मे नाटकीयता का कुछ न कुछ समावेश हुया है । इसका कारण स्पष्ट है। मानव जीवन की प्रत्येक संवेदनीय घटना अभिनयात्मक है और कहानी उभी घटना का चित्रोपस्थापन या रहस्योद्घाटन करती है । स्थूल रूप से नाटकीय शैली भी काव्यात्मक शैली के ही अन्तर्गत मानी जा सकती है क्योंकि नाटक स्वयं ही काव्य है। उम युग की कहानियों के अधिक विस्तृत अध्ययन के लिए इस बूक्ष्म वर्गीकरण की आवश्यकता हुई है। इन दोनो शैलियों में मुख्य अन्तर यह है कि काव्यात्मक कहानी सामान्य काव्यगत मनोहर कवि-कल्पना और अलंकारिकता मे विशिष्ट है और नाटकीय शैली की कहानी नाट कोचित कथोपकथन एब घात-प्रतिघात से। इस शैली के मुख्यत. तीन प्रकार दिखाई देते है-मलाप-प्रधान, मंघर्ष-प्रधान और उभय-प्रधान ! मलाप-प्रधान कहानियों में कहानी का मौन्दर्य पात्रो के स्वाभाविक और नाटकीय कथोपकथन पर विशेष आधारित है. उदाहरणार्थ 'महात्मा जी की करतूत' ।' मंघर्ष-प्रधान कहानियों में दो पक्षों के संघर्ष, कभी हार कभी जीत और अन्त में घटना के नाटकीय अवसान का उपस्थापन है, यथा 'शतरंज के खिलाडी २ इम पद्धति का मुन्दरतम रूप उन कहानियों में व्यक्त हुआ है जिनमे लेखक ने नाटकीय संलाप और संघर्ष दोनो का सामंजस मन्निवेश किया है, उदाहरणार्थ जयशंकरप्रसाद लिखित 'आकाशदीप । उस युग की कहानियों की चौथी व्यापक शैली विश्लेषणात्मक है। इस पद्धति की कहानियों में पूर्वोक्त तीनों पद्धतियों में से किसी एक का या अनेक का प्रयोग अवश्य हुआ है किन्तु पात्र या पात्रों के अन्र्तगत या वाह्य जगत का विश्लेषण ही कहानी की मुख्य विशेषता है। विश्लेषणात्मक कहानियां की भूमिका दो रूपों में अकित की गई है। चण्डीप्रमाद हृदयेश और जयशंकरप्रमाद ने प्रायः मभी भावात्मक कहानियों मे पात्रों के भावपक्ष का विश्लेषण प्रकृति की भूमिका में किया है। पेमचन्द, विश्वम्भरनाथ शमी कौशिक श्रादि का अधिकाश विश्लेषणात्मक कहानियों में मानव-मन के रहस्यों और घात-प्रतिघात की विवचना समाज की भूमिका में की गई है, उदाहरणार्थ पंचपरमेश्वर', 'मुक्तिमार्ग' आदि । 1 राम कृष्णदास प्रभा' वर्ष २ बंड २ पृ. २३१ । माधुरी वर्ष ३ वट , म० ३ १० २१०

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