Book Title: Mahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Author(s): Udaybhanu Sinh
Publisher: Lakhnou Vishva Vidyalaya

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Page 254
________________ बीच में उनका ध्यान आकृष्ट करने के लिए उन्हें सम्बुद्ध मी करता चलता है किन्तु कला की दृष्टि से अाधुनिक कहानियों में इनका कोई स्थान नहीं है । कथात्मक पद्धित का दूसरा प्रकार-तटस्थ वर्णन-कहानी की एक प्रधान प्रणाली है । किशोरीलाल गोस्वामी की 'इन्दुमती',' मास्टर भगवान दीन की 'प्लेग की चुडैल',२ द्विवेदी जी की 'तीन देवता',' रामचन्द्र शुक्ल की 'ग्यारह वर्ष का समय',४ श्रादि कहानियों में इस प्रणाली का अविकसित और अकलात्मक रूप दिखाई पड़ता है। प्रारम्भिक कथावर्णन की शैली अलौकिक, देवी, प्रायजनक, असम्भव आदि तत्वो से आकीर्ण है, यथा 'भूतोवाली हवेली', एक अलौकिकघटना',८ 'चन्द्रहास का अद्भुत आख्यान', 'भुतही कोठरी' आदि । तटस्थवर्णन पद्धति की जिन कहानियों मे दैवयोग, अतिप्राकृत तथा अद्भुत तत्वों का परित्याग और यथार्थता, विश्लेषण, मनोविज्ञान, नाटकीयता आदि का सम्मिश्रण हुअा उनमे आधुनिक कहानी का कलात्मक सुन्दर रूप व्यक्त हुआ, उदाहरणार्थ 'दुलाई वाली' ९ 'ताई'१० 'सौत' आदि। कथात्मक शैली के तृतीय प्रकार-आत्मचरित-का प्रयोग सीन प्रकार से हुआ। पहला प्रकार कल्पनाप्रधान वर्णन का है जिसमें मानवीकरण, कविकल्पना आदि के सहारे कहानी सौन्दर्य की सष्टि की गई है, यथा 'इत्यादि की आत्मकहानी',१२ एक 'अशरफी की आत्मकहानी13 श्रादि । दूसरा प्रकार यथार्थ घटनावर्णन का है जिसमें वास्तविक भ्रमण, शिकार अादि स्वानुभव तथा परानुभव की घटनाओं का वर्णन डुअा है, उदाहरणार्थ 'एक शिकारों की सच्ची कहानी',१४ 'एक ज्योतिषी की आत्मकथा'१५ श्रादि । इन कहानियों में घटनाओं १. सरस्वती, जून १६०३ ई० । २, सरस्वती, १६०२ ई. । ३. सरस्वती, १६०३ ई., पृष्ट १२३ । ४. सरस्वती. १६०३ ई०, पृ० ३०८ । ५. लाला पानी नन्दन, सरस्वनी १६०३ ई० पृ० २३५ । ६ राजा पृथ्वीपाल सिंह सरस्वती, १६०४ ई०. पृ० ३१६ । ७ सूर्य नारायण दीक्षित सरम्बनी. १६०६ ई०, पृ० २०४। = मधुमंगल मिश्र, सरस्वती, १६०८ ई०, पृ० ४८८ । ___ श्रीमती वगहिला. 'सरस्वती', १६०७ ई०, पृ० २७८ । १० विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक, 'सरस्वतो', १६२० ई०, पृ. ३१ । ६१. प्रेमचन्द, 'सरस्वती', १६१५ ई०, पृ० ३५३ ।। १२. यशोदानन्दन अखौरी, 'सरस्वती', भाग ५, पृ० ४४० । १३, वेंकटेश नारायण तिवारी, 'सरस्वती', भाग ७, पृ० ३६६ । १४. श्री निजामशाह, 'सरस्वती', १६०५ ई० पृ० २६६ । १५ श्रीमान 'सरस्वती, ६०ई० १० १० -

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