Book Title: Mahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Author(s): Udaybhanu Sinh
Publisher: Lakhnou Vishva Vidyalaya

View full book text
Previous | Next

Page 250
________________ "वमय श्ररि तान में समय चित्र यक्ति कर देना ही भविष्य को लिए प्राप्त न था। कवियों ने अपने मन मे भली भाति विचार करके सपनेहुँ सुख नाही' उनकी स्वतंत्रता की आकाक्षा ने राजनैतिक क का तीसरा रूप धारण किया यह अभिव्यक्ति साधरणतया पात्र प्रकार पन दुःख से गेकर उससे मुक करने के लिए शासका से प्रार्थना की यत्रणा का अन्त करने के लिए देवी-देवताओं और आदर्श मानवी की कहीं गिरी हुई दशा में ऊपर उठने के लिए देशवासियों को विनम्र T, 3 कही अवनति से उन्नति के मार्ग पर चलने के लिए मेल जोल की कही बहुत से क्रान्ति कर देने का सन्देश सुनाया गया ।" भारत के दीनहीन वर्तमान और श्राशापूर्ण भविष्य का मुन्दरतम चित्रान की 'भारत-भारती' में हुआ । वह स्वगत राष्ट्र भावना के कारण ही प्रियतम रचना हो सकी। t युग की तुलना में द्विवेदी-युग की राजनैतिक या राष्ट्रीय कविता प्रतीत फरियाद लगाते जाएगे, दुख दर्द सुनाने जाएंगे। हम अपना धर्म निभाएगे तुम अपना काम करो न करो || } सम्पूर्ण तन्त्र-प्रभा भाग २ संख्या १, पृष्ट १६६ । सत्याग्रह से अनुशासन की असहयोग से 'दुःशासन की साम्यवाद से सिंहासन की स्वतंत्रता से श्राश्वासन की || छिड़ी हुई है, कर्मक्षेत्र में शुचि संग्राम सचाने श्रावें । यदि मानव होवे भूतल पर मानवता दिग्बलाने आयें ॥ 7 एक राष्ट्रीय आत्मा-प्रभा, वर्ष २, खंड १, पृष्ट ३१, ३६ / कहते है सब लोग हमें हम दीन हीन हैं भिक्षुक है । कुछ भी हो हम लोग अभी अच्छे बनने के इच्छुक हैं । रूपनारायण पांडेय - सरस्वती', भाग १४, सं० ६ । हम कौन थे ar are sea और क्या होंगे अभीआश्रो विचारे आज मिलकर ये समस्याएं सभी । मैथिलीशरण गुप्त - 'भारत-भारती' | जैन, बौद्ध, पारसी, यहूदी, मुसलमान, सिख, ईसाई कोटिis से मिलकर कह दो हम सब है भाई भाई || रूपनागमण पांडेय - 'सरस्स्ती', भाग १४, सं० ० ६। काव्य के संदर्भ के उद्धृत राय कृष्णदास की 'चेतावनी', का मूल्य आदि गद्यकाव्य तथा रामसिंह की चतुर्वेदी, सुमद्रा मारी आदि की कविता

Loading...

Page Navigation
1 ... 248 249 250 251 252 253 254 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286