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प्रारणी का उद्धार करेगा महावीर सन्देश तुम्हारा
श्री अनूपचन्द न्यायतीर्थ, जयपुर
तुमने ऐसे सूत्र दिये हैं जिनमें जग कल्याण निहित है 'दूर करो रागदि कषायें
इनसे कितना हुआ अहित है हिंसादिक पांचों पापों का निश्चित ही होगा निपटारा ॥१॥
'नहीं सताप्रो किसी जीव को सब में प्राण एक से होते अपनी सुख सुविधा के कारण
क्यों औरों के शूल चुभोते पर पीड़ा दुःखों का कारण, अतः द्वेष से करो किनारा ॥२॥
सत्य अहिंसा पर दृढ़ रह कर आग्रह छोड़ समन्वय लामो स्यावाद और अनेकांत के
दृष्टिकोण को सब अपनायो वस्तु स्वभाव समझ लो पूरा इस ही में उद्धार तुम्हारा ।।३।।
संग्रह करना पाप नहीं, पर परिग्रह की ममता को त्यागो
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