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भगवान महावीर निर्वाण महोत्सव के शुभ अवसर पर
- श्री हुकमचन्द "अनिल"
आज महावीर प्रभु मोक्ष को पधारे थे, माता त्रिशला, पिता सिद्धार्थ के दुलारे थे, ऐसे प्रतिवीर की सब आरती उतारो रे । प्रतम की ज्योति जगा, दीप गीत गाओ रे ॥
वीर ने सत्य अहिंसा का पथ बताया था, " जीयो और जीने दो' सबको यही सुनाया था, पावन सन्मति का पाठ जग को फिर पढ़ाओ रे । दीप से दीप जले ज्ञान उजाला फैले, विश्व में प्रेम की गंगा लहर-लहर फैले, ऐसा मिल कार्य करो समय मत गंवान रे ।
वीर की वाणी को सुन, बैर भूल गये प्राणी, शेर और बकरी पियें एक घाट पर पानी, तुम भी तज भेद भाव मित्रता बढ़ायो रे ।
जैन है विश्व धर्म, धर्म नहीं कायर का, अनेकांत, स्यादवाद, समता धर्म है सबका, जीवन में बीर का उपदेश यह उतारो रे ।
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मनुष्य देह प्राज मिली निज का उपकार करो आत्म का बोध करो, भव का उद्धार करो वीर निर्वारण वर्ष "अनिल" सिर नवानो रे ।
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