Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1975
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur

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Page 359
________________ 3-6 दोस्त - चन्त्या ना करो । सब रेड्डी हां । थांगे भागा भो कंवारी जेज है । महावीर - तो म्हूं बी त्यार हूं । लो एक र ये दो । दो केतांई तो सेंग भागता बण्या । जद महावीर मुस्काया । महावीर - एक दो मेई क्यूं रवाना हो रे । भागा भो बिना भागोला तो कई अरथ नी पटेला । चालो पाछा ठकारणे । दोस्त - हां प्राग्या ठकारणे । अब पूरो ध्यान राखसां । महावीर - एक दो श्रर भागा भो । सब दोडया पर महावीर सबऊ प्रागे जा पोंच्या । पीपल री पांचमी डाली पर ठेठ ऊपर चड़ ने डाली खड़खड़ाई भर हूत करतां नीचे कूदग्या | दोस्त वीरां में वीर थांई महावीर हो । म्हैं तो थांगे देखने चकचकाय हो गया । महावीर - यो तो घणो सोरो काम हो । डरपो क्यू ? छोटा कामऊ ई जो डरपवा लाग जाबोला तो आगे कई करोला । ..... दोस्त - थांणी बरोबरी तो कदेई को कर सक न । लो अबे म्हा बणा घोड़ी पर थां करो सवारी | महावीर एक-एक करने सबरी घोड़ी बणाय सवारी करे। पीपलऊ भागा भो रे ठिकाणे तांई बैठ्या जावे, बैठने ऊपर थोड़ा हाले कूदे श्रर श्रामलकी गीत बोले आमलकी भाई आमलकी चालरे घोड़ी चामलकी । घामलको रो कई निसांरण भींत भड़ाको खूंटो ताण । अबकी सबकी ग्रामलकी जी जाणे प्यारामल की । प्यारामल की री जइगां जंडे ऊपरे करे भंडोई नाम लियो जावे । डा Jain Education International सवारी चुकाय एक हाई फेर चाली । महावीर रे भागा भो केवतांई सब दोङ्या पर फेर सब पाछे रेहग्या अर म्हावर ऊपर डाल पर जाई पोंच्या । प्रतराक में छोरा ने एक कालो कलूटो सांप नजर प्रायो. सांप जीब लपलपावतों, फणकारतो थको देखतांई छोरा तो रफ्फू चक्कर ब्या । प्राधा गाबा तो वठेई रेइग्या । वणी एक पगरखी पेरी तो एक वठेई छूटगी । महावीर सांप ने देख न या धमक्या न चीख्या चिल्लाया । श्रर वने पकड़र फेंकदीधो । सांप प्रापरो गेलो लीधो । महावीर री या करामात सोनाबाई, रूपाबाई देखरी जी वांने धणी देर वियां घरे नीं देख र जोबाने वठीने आई परी । महावीर जद वठू जावा लागा तो सोनाबाई रोक परा र बोल्या । सोनाबाई - कंवरा, घंटा दो होवरण आया । आखाई म्हेल रा खुणा ढूंढ़ मार्या । पगां रो पाणी हुयो जो हुयो पर श्रपरे नी मिलबाऊ रोवरणपत होयगी । महावीर - हें कोई नानो टाबर हूं जो कठेई धूम जाऊ लो । पाली में हुलराय हुलराय नेथां म्हने निडर बणाय दीधो । सोनाबाई - प्रापरी जूत्यां रो होड़ बी नीं कर सकूं कुंवरजी । श्रपरो मालकपरणो है के भाप भसी बात केवो । महावीर - मूं झूठो व तो पूछलो रूपाबाई ने । aa feड़ा है | सोनाबाई - आपने कूकर पतो लागो ? महावीर फेर वाई बात करो । हालरिया हुलरिया में थां कई बातां नी जतलाई ? थारणां जसी बायां सब बालकां री दायां वेवे तो कांई केवरणो ? रूपाबाई -पाछला जलम रा म्हारणा प्राछा परताप के प्रापरी सेवा करवा रो मोको मिल्यो । या बात कर सोना रूपा दोयां री प्राख्यां सूं प्रसूड़ा ( पड़दो बंद) डरक पड़ या । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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