Book Title: Mahavir Vani
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 389
________________ ३६४ महावीर वाणी जो मनुष्य पाँचों आस्रवों में प्रवृत्त है, तीन गुप्तियों से अगुप्त है, षट्काय के प्रति अविरत है, तीव्र आरम्भ (सावद्य व्यापार) में संलग्न है, क्षुद्र है, बिना विचारे कार्य करनेवाला है, लौकिक और पारलौकिक दोषों की शंका से रहित मनवाला है नृशंस है, अजितेन्द्रिय है-जो इन सभी योगों से युक्त है, वह कृष्ण लेश्या में परिणत होता है। ३. इस्साअमरिसअतवो अविज्जमाया अहीरिया य। गेद्धी पओसे य सढे पमत्ते रसलोलुए साय गवेसए य ।। आरम्भाओ अविरओ खुद्दो साहस्सिओ नरो। एयजोगसमाउत्तो नीलसेसं तु परिणमे ।। (उ० ३४ : २३-२४) जो मनुष्य ईर्ष्यालु है, कदाग्रही है, अतपस्वी है, अज्ञानी है, मायावी है, निर्लज्ज है, गृद्ध है, प्रद्वेष करनेवाला है, शठ है, प्रमत्त है, रस.लोलुप है, सुख का गवेषक है, आरम्भ से अविरत है क्षुद्र है, बिना विचारे कार्य करनेवाला है-जो इन सभी योगों से युक्त है, वह नील लेश्या में परिणत होता है। ४. वंके वंकसमायारे नियडिल्ले अणुज्जुए। पलिउंचग ओवहिए मिच्छदिट्ठी अणारिए।। उप्फालगदुट्ठवाई य तेणे यावि य मच्छरी। एयजोगसमाउत्तो काउलेसं तु परिणमे ।। (उ० ३४ : २५-२६) जो मनुष्य वचन से वक्र है, जिसका आचरण वक्र है, कपट करता है, सरलता से रहित है, अपने दोषों को छिपाता है, छद्म का आचरण करता है, मिथ्यादृष्टि है, अनार्य है, हंसोड है, दुष्ट वचन बोलनेवाला है, चोर है, मत्सरी है-जो इन सभी योगों से युक्त है, वह कापोत लेश्या में परिणत होता है। ५. नीयावित्ती अचवले अमाई अकुऊहले । विणीयविणए दंते जोगवं उवहाणवं ।। पियधम्मे दढधम्मे वज्जभीरू हिएसए। एयजोगममाउत्तो तेउलेसं तु परिणमे।। (उ० ३४ : २७-२८) जो मनुष्य नम्रता से बर्ताव करता है, अचपल है, माया से रहित है, अकतूहली है, विनय करने में निपुण है, दान्त है, समाधियुक्त है, उपधान (श्रुत अध्ययन करते समय तप) करनेवाला है, धर्म में प्रेम रखता है, धर्म में दृढ़ है, पाप-भीरु है, मुक्ति का गवेषक है-जो इन सभी योगों से युक्त है, वह तेजोलेश्या में परिणत होता है। ६. पयणुक्कोहमाणे य मायालोभे य पयणुए। पसंतचित्ते दंतप्पा जोगवं उपहाणवं ।।

Loading...

Page Navigation
1 ... 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410