Book Title: Mahavir Vani
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 391
________________ ३६६ महावीर वाणी तेजस् पद्म और शुक्ल-ये तीनों धर्म लेश्याएँ हैं। इन तीनों से जीव सुगति को प्राप्त होता है। ११. तम्हा एयाण लेसाणं अणुभागे वियाणिया। अप्पसत्थाओ वज्जित्ता पसत्थाओ अहिट्ठज्जासि।। (उ० ३४ : ६१) इसलिए इन लेश्याओं के अनुभागों को जानकर मुनि अप्रशस्त लेश्याओं का वर्जन करे और प्रशस्त लेश्याओं को स्वीकार करे। ११. मोक्ष-मार्ग १. नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा। एव मग्गो त्ति पन्नत्तो जिणेहिं वरदंसिहिं।। (उ० २८ : २) वस्तु स्वरूप को जानने वाले–परमदर्शी जिनों ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप-इस चतुष्टय को मोक्ष-मार्ग कहा है। २. एयं पंचविहं नाणं दव्वाण य गुणाण य। पज्जवाणं च सव्वेसिं नाणं नाणीहि देसियं ।। (उ० २८ : ५) सर्व द्रव्य , उन्के सर्व गुण और उनकी सर्व पर्याय के यथार्थ ज्ञान को ही ज्ञानी भगवान ने 'ज्ञान' कहा है। यह ज्ञान पाँच' प्रकार से होता है। ३. जीवाजीवा य बंधो य पुण्णं पावासवो तहा। संवरो निज्जरा मोक्खो संतेए तहिया नव।। (उ० २८ : १४) (१) जीव, (२) अजीव, (३) बंध, (४) पुण्य, (५) पाप, (६) आस्रव, (७) संवर, (८) निर्जरा, और (६) मोक्ष-ये नौ तत्त्व-सत् पदार्थ हैं। ४. तहियाणं तु भावाणं सब्भावे उवएसणं। भावेणं सद्दतस्स सम्मत्तं तं वियाहियं ।। (उ० २८ : १५) तथ्य भावों के सद्भाव के उपदेश में जो आन्तरिक श्रद्धा-विश्वास करता है, उसे सम्यक्त्व होता है। अन्तःकरण की इस श्रद्धा को सम्यक्त्व कहा गया है। ५. परमत्थसंथवो वा सुदिट्ठपरमत्थसेवणा वा वि। वावन्नकुदंसणवज्जणा य सम्मत्तसद्दहणा।। (उ० २८ : २८) १. देखिए पृ० ४१४ टिप्पणी नं० १।

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