Book Title: Mahavir Vani
Author(s): Shreechand Rampuriya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 396
________________ ३७. दर्शन ३७१ डा ५. जया चयइ संजोगं सङितरबाहिरं। ___तया मुंडे भवित्ताणं पब्वइए अणागारिय।। (द० ४ : १८) जब मनुष्य बाहर और भीतर के सांसारिक सम्बन्धों को छोड़ देता है, तब मुण्ड हो अनगार वृत्ति को धारण करता है। ६. जया मुंडे भवित्ताणं पव्वइए अणगारियं । तया संवरमुक्कट्इ धम्मं फासे अणुत्तरं ।। (द० ४ : १६) जब मनुष्य मुण्ड हो अनगार वृत्ति को धारण करता है, तब वह उत्कृष्ट संयम युक्त अणुत्तर धर्म का स्पर्श करता है। ७. जया संवरमुक्किटें धम्मं फासे अणुत्तरं। तया धुणइ कम्मरयं अबोहिकलुसं कडं ।। (द० ४ : २०) जब मनुष्य उत्कृष्ट संयमयुक्त अनुत्तर धर्म का स्पर्श करता है, तब वह अबोधि रूप पाप द्वारा संचित' की हुई कर्म-रज को धुन डालता है। ८. जया धुणइ कम्मरयं अबोहिकलुसं कडं। तया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई।। (द० ४ : २१) जब मनुष्य अबोधि रूप पाप द्वारा संचित की हुई कर्म-रज को धुन डालता है, तब सर्वत्रगामी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है। ६. जया सव्वत्तगं नाणं दंसणं चाभिगच्छई। तया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली।। (द० ४ : २२) जब मनुष्य सर्वत्रगामी केवलज्ञान और केवलदर्शन को प्राप्त कर लेता है, तब वह जिन (केवली) लोक अलोक को जान लेता है। १०. जया लोगमलोगं च जिणो जाणइ केवली। तया जोगे निलंभित्ता सेलेसिं पडिवज्जए।। (द० ४ : २३) जब मनुष्य जिन (केवली) होकर अलोक को जान लेता है, तब योगों का निरोध कर वह शैलेशी अवस्था को प्राप्त करता है। ११. जया जाने निलंभित्ता सेलेसिं पडिवज्जई। तया कम्मं खवित्ताणं सिद्धिं गच्छइ नीरओ।। (द० ४ : २४) जब मनुष्य योगों का निरोध कर शैलीशी अवस्था को प्राप्त होता है, तब वह कर्मों का क्षय कर नीरज हो सिद्धि को प्राप्त होता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410