Book Title: Mahavir Jain Vidyalay Amrut Mahotsav Smruti Granth
Author(s): Bakul Raval, C N Sanghvi
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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________________ प्रभु-भक्ति है कल्पतरु 351 मुण्डकोपनिषद् की श्रुति कहती है - ‘कृपालू परमात्मा के दर्शन कर लेने पर जीव की अविद्या रूपी हृदय-ग्रन्थि टूट जाती है, उसके सभी संशय नष्ट हो जाते हैं और कर्म क्षीण हो जाते हैं।' 2. प्रभु-भक्ति के प्रति अरुचि आधुनिक युग की भौतिकवादी भोगवादी दृष्टि के कारण उत्पन्न हुई है। इससे विश्व शान्ति की नींव हिल गयी है क्योंकि विश्व शान्ति का आधार है प्रेम। जब प्रेम का स्रोत सूख जाता है, तब घृणा, द्वेष, हिंसा एवं स्वार्थ की कालिमा मन-मुकुर को मैला कर देती है। इससे परमार्थ की भावना समाप्त हो जाती है। मनुष्य को दैहिक सुख ही सुहावना लगता है। देह-सुख की लालसा दसरों को पीड़ा पहुँचाने में भी नहीं लज्जाती। जगत् ऐसी स्वार्थी प्रवृत्तिवाले मनुष्यों के उत्पीड़न से पीड़ित है। ___ इसके विपरीत प्रभु-भक्ति प्रेम का सहज प्रस्फुटन करती है। प्रभु करुणा और प्रेम के अवतार हैं, वे समस्त जीवों के प्रति करुणा और प्रेम की वृष्टि करते हैं। ऐसे प्रेम और करुणा के अवतार सच्चिदानन्द परमात्मा की भक्ति जीवमात्र के प्रति प्रेम-भाव जागृत करती है और क्षणिक दैहिक सुख के प्रति अरुचि उत्पन्न करती है। वस्तुत: प्रभु-भक्ति मन में प्रेमादि भाव जगाकर परमार्थ के असंख्य फूल खिलाती है। भक्त का निर्मल मन जीव-मात्र की सुख-शान्ति के लिए सदा प्रयत्नशील रहता है। प्रभु-भक्त पीडितों की. सहायता के लिए सदा तत्पर रहता है, वह दुःखी प्राणियों की प्रेम भाव से सेवा करता है। वह अकाल, दुर्भिक्ष, जल-प्रलय एवं रोगग्रसित प्राणियों 1. स्तोत्रम्रजं तव जिनेन्द्रगुणैर्निबद्धां, भक्त्या मया रुचिरवर्णविचित्रपुष्पाम्। तं मानतुङ्गमवशा समुपैति लक्ष्मीः / / - श्री भक्तामरस्तोत्र : श्लोक 48 2. भिद्यते हृदयग्रन्थि नश्यति सर्वसंशयाः। क्षीयन्ते चास्य कर्माणि तस्मिन् दृष्टे परावरे॥ -मुण्डकोपनिषद् : 1218