Book Title: Mahavir Jain Vidyalay Amrut Mahotsav Smruti Granth
Author(s): Bakul Raval, C N Sanghvi
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 389
________________ 366 आखिर... ईश्वरको किस स्वरूप में कैसा मानें? इसका क्या कारण है? इसके उत्तर में भी ईश्वरकर्तृत्ववादियों के पास सिर्फ एक ही शब्द है - बस 'इच्छा' (ईश्वरेच्छा बलीयसी) ईश्वर की इच्छा ही बलवान है। ईश्वर की इच्छा मात्र से ही यह सब होता है। इच्छा के कारण ईश्वर लीला-क्रीडा करता है। और ईश्वर की इच्छा जन्य लीला-क्रीडा की घटना ही यह संसार है। इस प्रकार समस्त संसार को मूलभूत कारणस्वरूप ईश्वर की इच्छा के साथ ही जोड दिया है। परन्तु किसी ने यह विचार नहीं किया कि... ईश्वर जैसी सर्व शक्तिमान कौन महान है? ईश्वर या इच्छा? कौन बड़ा है? ईश्वर या इच्छा? कौन स्वतन्त्र है और कौन परतन्त्र (पराधीन-गुलाम) है? ईश्वर या इच्छा? क्या ईश्वर इच्छा के आधीन है? या इच्छा ईश्वर के आधीन है? यदि ईश्वर इच्छा के आधीन है तो ईश्वर ही गुलाम पराधीन है, परतन्त्र है। और इच्छा बडी है। क्योंकि छोटा ही बडे के आधीन, गुलाम होता है। इच्छा स्वतन्त्र है, और ईश्वर पराधीन-परतन्त्र-गुलाम हो गया। पराधीन - गुलाम छोटे नोकर जैसा होता है। और स्वतन्त्र मालिक - स्वामी (जैसा) होता - है। वही बड़ा होता है। यहां किसको क्या और कैसा मानें? ईश्वर के आधीन इच्छा माने या इच्छा के आधीन ईश्वर को मानें ? इन दोनों पक्षों में से आज दिन तक सर्वत्र प्रचलित और प्रसिद्ध पक्ष “ईश्वर की इच्छा” में तो ईश्वर ही इच्छा के आधीन है। इसमें ईश्वर को इच्छातत्त्वके आधीन बताया है। इससे यह साफ स्पष्ट होता है कि... इतना बडा सर्व शक्तिमान समर्थ ईश्वर और वह भी सामान्य तुच्छ इच्छा के आधीन क्यों हो गया? इच्छा के आधीन होने में ईश्वर की महानता घट गई। शक्ति घट गई। स्वतंत्रता समाप्त हो गई। और इच्छा की गुलामी - परतन्त्रता-पराधीनता ईश्वर को भुगतनी पडी। आज पूरे संसार में कहीं भी कोई प्रिय या अप्रिय घटना घटती है, तब उसके पीछे लोग जब कारण पूछते हैं तो ईश्वर की इच्छा (मरजी) एसा ही थी (या होगी) ऐसा कहकर बात का अन्त लाते है। बच्चे को जन्म देकर मां मर जाय

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