Book Title: Mahavir Jain Vidyalay Amrut Mahotsav Smruti Granth
Author(s): Bakul Raval, C N Sanghvi
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay

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Page 392
________________ अमृत महोत्सव स्मृति ग्रंथ 369 तो क्या वे सब एक ही इच्छा से जन्य हो सकते हैं? लेकिन संसार के अनन्त जीवों में ऐसी इच्छा कभी भी पाई नहीं गई। एक माता जिस इच्छा से संतान को प्यार कर सकती है, स्तनपान करा सकती है उसी इच्छा से पति के साथ प्रेम नहीं कर सकती। दोनों इच्छाएं संपूर्णरूप से भिन्न - भिन्न ही होती है। एक इच्छा से दोनों के प्रति दोनों प्रकार के कार्य संभव ही नहीं है। अत: ईश्वर में भी कैसे समझना? ___ यदि कार्य के अनुरूप इच्छा मानें तो संसार में कृमि-कीट से लेकर आकाश तक के अनन्त कार्यों के अनुरूप कितनी इच्छाएं माननी चाहिए। फिर उतनी सब अनन्त इच्छाओं की उत्पत्ति एक साथ माननी या अलग अलग? कैसे इच्छाएं उत्पन्न हुई ? जब जब जिस जिस कार्य की न्यूनता - आवश्यकता महसूस हुई तब तब उस उस की इच्छा उत्पन्न हुई या नहीं? या फिर पहले से ही सब इच्छाएं पड़ी हुई थी और फिर जब जब जो कार्य बनाने - करने का अवसर सामने आया उस समय उस के अनुरूप कार्य या कार्य के अनुरूप इच्छा, क्या मानें ? तथा कार्य से पहले इच्छा माने या कार्य के सहभू मानें? - ___इस स्थिति में एक प्रश्न और उठता है कि - क्या ईश्वर अपनी इच्छानुसार सृष्टि की रचना करते हैं? या सृष्टि के जीवों की इच्छाओं को पूरी करने के लिए प्रवृत्त होते हैं? या सृष्टि के जीवों की इच्छानुरूप आई ही कहां से कि जिनकी इच्छा के अनुरूप ईश्वर प्रवृत्ति करें। जब जीव ही नहीं थे तो फिर उनकी इच्छा का सवाल ही कहाँ ऊठता है। और यदि प्रथम पक्ष मानें तो सृष्टि की विरोधाभासिता परस्पर सुख-दुःख, हर्ष-शोक, अमीर-गरीब आदि अनेक प्रकार की विषमताओं, विचित्रताओं, विविधताओं, विभिन्नताओं से भरे इस संसार के निर्माणार्थ ईश्वर की इच्छाएं कैसी और कितनी, किस प्रकार की थी? इसलिए क्या सही मानना ? जगत .

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