Book Title: Mahavir Jain Vidyalay Amrut Mahotsav Smruti Granth
Author(s): Bakul Raval, C N Sanghvi
Publisher: Mahavir Jain Vidyalay
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________________ 383 एक लाख परमारों का उद्धार : लिये और बड़ौदा जिले के बोड़ेली शहर में पहुंचे। परमार क्षत्रियों का उद्धार इस क्षेत्र में जैन धर्म के प्रचार का कार्य छोटे रूप में धीरे धीरे , चल रहा था। इस प्रचार कार्य को व्यवस्थित करने के लिए पंन्यास श्रीरंग विजयजी की प्रेरणा से सन् 1936 में बोड़ेली में श्रीपरमार क्षत्रिय जैन धर्म प्रचारक सभा की स्थापना हुई थी। जैन धर्म के इस प्रचार कार्य को अब बड़े स्तर पर और व्यापक रूप में करने की आवश्यकता थी। इस के लिए एक ऐसे कर्मठ साधु की आवश्यकता थी जो उनकी भाषा से रीति-रिवाजों से, मान्यताओं से और वहां की परिस्थितियों से भलीभांति परिचित हो। यह कितना सुनहरी संयोग था कि इधर उसी क्षेत्र के परमार क्षत्रिय वंश के प्रथम जैन साधु बने। गणि श्री इन्द्रविजयजी इसी प्रचार कार्य को आगे बढ़ाने के लिए बोडेली पधार थे। वह सन् 1956 वां साल था। गणि श्री इन्द्र विजयजी इस प्रचार कार्य में तन-मन से जुट गए और फिर उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। केवल एक नहीं दो नहीं, तीन नहीं, पांच नहीं, दस नहीं, किन्तु बारह वर्षों तक इस क्षेत्र में घर-घर, गली गली, गांव-गांव प्रचार करते हुए घूमते रहे। उनके मन में बस एक ही विश्वास था कि मैं कैसे अधिक से अधिक लोगों को जिन का अनुयायी जैन बनाऊं और उन्हें समकित की प्राप्ति कराउँ। अपनी बुलन्द आवाज, ज्ञान गाम्भीर्य एवं समजाने की सरल-सरस शैली के कारण इस क्षेत्र में उनके प्रवचनों की धूम मची रही। इसाई मिशनरी, रामानंदी ओर स्वामीनारायण सम्प्रदाय के धर्मगुरु यहां पहले से ही अपने धर्म और मत के प्रचार कार्य में लगे हुए थे। जैसे ही गणि इन्द्र विजयजी इस क्षेत्र में आए वे उनके सामने टिक नहीं पाए। गणि श्री इन्द्र विजयजी महाराज के बारह वर्षों के भगीरथ पुरुषार्थ के फलस्वरूप इस क्षेत्र में एक लाख परमार क्षत्रिय भाई-बहन (जिनमें पहले भी सम्मिलित है) नये जैन बने। 115 मुमुक्षुओं ने दीक्षा अंगीकार की। 60 गांवों में जिन मंदिर बने और उतने ही गांवों में जैन धार्मिक पाठशालाएं