Book Title: Mahabal Malayasundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
View full book text
________________
(२६६) जरहर करे अगनि बुंदा ॥ तप तप्या शुंढ सित्कार जल वर्षणे, तुरत शीतल करे ते गयंदा ॥ स० ॥ ॥१२॥ सबल हाथाल जूजाल मोगर ग्रही, जोरशुं वैरी सनमुख उबालें ॥ वहत नन शस्त्र देखी सुर खेचरा, वज्रशंकायें नासे विचालें ॥ स० ॥ १३ ॥ प्रोश्या सुजट के गांजमे गगनमां, ऊरध कीधा जि स्या नट्ट वंशें ॥ उमत आकाश आयास विण गृध्र नें, बलि महोत्सव हुउँ तास मंसें ॥ स ॥ १४ ॥ अमम अममाट करि बूटीयां शतधनी, धुमल धूआं धुखें धुम्मरोला ॥अगनिकण खिरत तग तगत ताता घणा, दश दिशे चालीया लोह गोला ।। स० १५ ॥ दमा परनाल ज्यों खाल रुहिरा वहे, कमम नर को परी खंग फूटें ॥ गमम गेवरि गमें नालि मुख आह एया, खमम खग खाटकें फलक त्रूटें ॥ स० ॥ १६ ॥ कलह खय काल सरिखो हुन आकरो, सिद्ध नृप सै न्य नाणु दिगंतें ॥ थिर करी बल हवे आप समरंग णे, आवियो राय रोषाल खंतें ॥ स॥ १७ ॥ हाक तो सुनटने युद्ध मंमें तिहां, सिक रणरंग गज बेसी ताजे ॥ विश्व नूषण गजें शूर चढि धाश्यो, वीर संग्राम तिलकें विराजें ॥ स॥ १७ ॥ देखि पर
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324