Book Title: Mahabal Malayasundarino Ras
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 314
________________ (३११) ॥ दोहा ॥ ॥ पूरित लोचन बांसुयें, खेदाकुल भूपाल ॥ निजन्न टनें श्म आदिसे, करिभृकुटीनो चाल ॥१॥पग अनु सारे निरखता, करो शीघ्र परगट्ट ॥ जिम पापीने पाप फल, आवे उदय विकट्ट॥२॥आप हृदय गणे ठव्यो, बीजो इष्ट परिणाम ॥ पुःप्रधर्षरस सींचतां, ऊग्युं क टक विराम ॥३॥मुनि हिंसा शाखाशतें, पाम्यो अति विस्तार ।। आशंकादिक कुसुमशु, वाध्यो चिहुं पख जार ॥ ४ ॥ प्राणनाश फल तेहy, अनिमुख हूस मद ॥ हिंसकनें फलशे हवे, पोष्यो पातक वृक्ष ॥५॥ ॥ ढाल बत्रीशमी॥ लाउलदे मात मलार ॥ ए देशी॥ वचन सुणी ततकाल, ऊठ्या नममबराल, आज हो उठा रे जण रूग जाणे कालनाजी॥१॥ जोतां इत उत नूम, मांझे सबली धूम, आज हो धारे रे अ नुसारे पगनें तेहनेंजी॥२॥पुर बाहिर एक देश, पेखत कुंज निवेश, श्राज हो दीठी रे त्रियं धीठी पेठी खाम मांजी ॥३॥ नीचे मुख जयजीत, श्याम वसन अविनीत, श्राज हो बेठी रे उपरांठी काया गोपवीजी ॥४॥ सुहमें साही केश, काढ। बाहिर देश, आज हो श्राणी रे कलुषाणी सोपी रायनेंजी ॥ ५॥ तामी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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